आला हजरत का तर्जुमान ए कुरान कन्ज़ुल ईमान कि खुसुसियात
(आला हजरत का तर्जुमान ए कुरान कन्ज़ुल ईमान कि खुसुसियात )
जैसा कि पिछली पोस्ट मे हमने बताया कि कुरान को दुसरी जुबानो मे ट्रान्सलेट ( तर्जुमा ) करने के दौ उसलुब यानी तरीके है
एक हर लफ्ज़ के निचे उसका तर्जुमा यानी मतलब लिख दिया जाता है ( इसके बारे मे हम पिछली पोस्ट मे लिख चुके है )
अब दुसरा तरीका ये होता है कि कुरान कि आयत को मुहावरो मे ट्रान्सलेट करना यानी लफ्ज़ो के तर्जुमे को आगे पिछे करके पुरा एक वाक्य बनाना
जैसे what is your name
तुम्हारा नाम क्या है ,,
तो इस तरह का तर्जुमा तो सभी ने किया लेकिन
आला हजरत ने जो मुहावरी तर्जुमा किया है वो ऐसा कमाल का किया है जिसमे
लफ्ज़ी तर्जुमा भी आ जाता है पुरी इबारत का वाक्य भी समझ आ जाता है और फलसफा भी समझ आ जाता
दुसरो के तर्जुमे को समझने के लिये बङी तफसिर दरकार होती है लेकिन आला हजरत के तर्जुमे का आलम ये है कि खालिस तर्जुमे से ही रब्त हुस्न ब्यान हुक्म फलसफा जो़क अदब सबकुछ मिल जाता है
आईये आपको एक आयत का खुबसुरत मन्ज़र बताऊ आयत ये है 👇👇
وَ اِذَا خَلَوۡا عَضُّوۡا عَلَیۡکُمُ الۡاَنَامِلَ مِنَ الۡغَیۡظِ
तर्जुमा आला हजरत का -और अकेले मे हो तो मारे गुस्से के तुम पर ऊंगलिया चबाए तुम फरमा दो कि मर जाओ अपनी घुटन मे ( सुराह आले ईमरान आयत 119)
इस आयत मे दौ बार ग़ैयज़ का लफ्ज़ आया
और गैयज़ कहते है सख्स व शदीद गुस्से कि हालत
लेकिन आला हजरत ने पहले वाले लफ्ज़े गैज़ का तर्जुमा गुस्सा किया और दुसरे वाले लफ्ज़े गेज़ का तर्जुमा घुटन किया
जबकी आला हजरत के सिवा हर तर्जुमा करने वाले ने दुसरे लफ्ज़े गेज का तर्जुमा भी गुस्सा ही किया
आप कहेंगे कि ऐसा क्यो ?
तो सुनो अरबी कि लुगत मे गैज़ का एक माना घुटन भी होता है
जब इन्सान को सख्त गुस्सा आता है और वो कुछ कर नही पाता तो अन्दर ही अन्दर जो घुटन होती है उस घुटन को नफ्सियाती गैज़ ही कहते है
तो काफिरो को जो हुजुर अलहीस्सलाम कि कामियाबी से जो नफ्सियाती घुटन होती थी उसका तज़किरा अल्लाह ने इस आयत मे किया है
और आला हजरत ने उस नफ्सियाती केफियत को तर्जुमे से ज़ाहीर फरमा दिया
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