हज़रत ग़ौस-ए-आज़म रहमतुल्लाह अलैह
इस्लाम की तारीख़ में बहुत से ऐसे मुबारक हस्ती के नाम दर्ज हैं जिनकी तालीमात ने इंसानों को हक़ का रास्ता दिखाया और उन्हें गुमराही के अंधेरों से निकालकर रौशनी की तरफ़ लाया। उन्हीं बुज़ुर्गों में एक बड़ा नाम हज़रत शेख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह का है, जिन्हें दुनिया ग़ौस-ए-आज़म के नाम से जानती है।
आपका असल नाम अब्दुल क़ादिर और लक़ब मोहय्युद्दीन है। आपकी विलादत रमज़ान 470 हिजरी में ईराक़ के शहर जीलान में हुई। आपने बचपन ही से इल्म-ओ-हिकमत और तक़वा-ओ-परहेज़गारी के वो जलवे दिखाए कि लोग आपको देखकर हैरत में पड़ जाते थे। आपकी परवरिश एक नेक ख़ानदान में हुई, और आप शुरू से ही नफ्स की मुख़ालिफ़त और इबादत में मशगूल रहते थे।
जब आपने इल्म हासिल करने का इरादा किया तो बग़दाद तशरीफ़ ले गए। वहाँ आपने ज़माने के मशहूर उलमा से इल्म-ए-शरीअत की तालीम हासिल की। आपकी तालीम का असर इतना गहरा था कि जब आप किसी मजलिस में तशरीफ़ लाते तो लोगों के दिल हिल जाते, गुनहगार तौबा करने लगते और ग़ाफ़िलों के दिलों पर हक़ की रोशनी उतरती।
आप न सिर्फ़ इल्म में माहिर थे, बल्कि अमल और अख़लाक़ में भी बुलंदी पर थे। आप रातों को इबादत करते, दिन को रोज़ा रखते और हर वक्त अल्लाह की याद में मशगूल रहते। आपकी तक़रीरों और इल्म की शुहरत दूर-दूर तक फैल गई और लोग हर तरफ़ से आपके पास इल्म हासिल करने के लिए आने लगे।
हज़रत ग़ौस-ए-आज़म रह. की तालीमात
आपकी तालीम का असल मक़सद इंसान को दुनिया के धोके से निकालकर हक़ीक़ी मक़सद की तरफ़ मोड़ना था। आप फ़रमाते थे कि इंसान की सबसे बड़ी ग़लती यह है कि वह इस फानी (ख़त्म होने वाली) दुनिया को असल मक़सद समझ बैठता है, जबकि असल मक़सद अल्लाह की रज़ा हासिल करना है।
आपकी तालीमात में चार बातें सबसे ज़्यादा अहम हैं।
आपकी तालीमात की बुनियाद तौहीद, तवक्कल, इस्लाह-ए-नफ़्स और दुनिया की हक़ीक़त पर थी, और यही वजह थी कि आपकी तक़रीरें दिलों पर असर करती थीं और लोगों के दिलों की कैफ़ियत बदल जाती थी।
तौहीद – आप फ़रमाते थे कि जब तक इंसान अपने दिल से दुनिया की मोहब्बत नहीं निकालता और अल्लाह के सिवा किसी और पर भरोसा करना छोड़ नहीं देता, तब तक सच्ची तौहीद हासिल नहीं होती।
तवक्कुल – आप हमेशा तवक्कुल (अल्लाह पर भरोसा) की तालीम देते थे और फ़रमाते थे कि जो शख्स अल्लाह पर सच्चा यक़ीन कर लेता है, अल्लाह उसके लिए हर दरवाज़ा खोल देता है।
नफ़्स की इस्लाह – आप फ़रमाते थे कि सबसे बड़ा दुश्मन इंसान का अपना नफ़्स है, और जब तक इंसान अपने नफ़्स को अल्लाह की राह में कुर्बान नहीं करता, तब तक उसे हक़ीक़ी कामयाबी हासिल नहीं होती।
दुनिया की हक़ीक़त – आप दुनिया की मोहब्बत को इंसान के लिए सबसे बड़ा धोका बताते थे और फ़रमाते थे कि दुनिया की हक़ीक़त बस एक साया है, जो चंद लम्हों के लिए रहता है और फिर मिट जाता है।
हज़रत ग़ौस-ए-आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने इल्म और हिकमत के समंदर से कई किताबें तहरीर फ़रमाईं, जिनमें से कुछ अहम किताबें में से एक किताब यह है फ़तह अल-ग़ैब यह आपकी मशहूर किताबों में से एक है, जिसमें आपके रुहानी तक़रीरें दर्ज हैं।
"फ़तह अल-ग़ैब" हज़रत ग़ौस-ए-आज़म (रह.) की बेहतरीन किताबों में से एक है। यह सिर्फ़ एक किताब नहीं, बल्कि एक ऐसा रूहानी नक्शा है जो इंसान को अल्लाह के करीब ले जाता है। इस किताब में आपकी तक़रीरें दर्ज हैं, जिनमें तौहीद, तवक्कुल, इस्लाह-ए-नफ़्स और दुनिया की हक़ीक़त पर तफ़सील से रोशनी डाली गई है।
इस किताब में यह बताया गया है कि इंसान अगर अल्लाह की राह में चलना चाहता है, तो उसे सबसे पहले अपने नफ़्स से जंग करनी होगी। जब तक इंसान अपने नफ़्स की बुरी ख्वाहिशों को खत्म नहीं करता, तब तक वह हक़ तक नहीं पहुंच सकता।
इसमें यह भी बयान किया गया है कि तौहीद सिर्फ़ जबान से "ला इलाहा इलल्लाह" कह देने का नाम नहीं, बल्कि तौहीद यह है कि इंसान का दिल सिर्फ़ अल्लाह पर भरोसा करे और उसके अलावा किसी और को हाकिम न माने।
"फ़तह अल-ग़ैब" का हर सफ़्हा इल्म-ओ-हिकमत से भरा हुआ है।
हज़रत ग़ौस-ए-आज़म रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी और तालीमात हर दौर के लिए एक रौशनी हैं। उनकी किताबें और उनके बयानात सिर्फ़ इल्म की बातें नहीं, बल्कि अमल की राहें भी हैं।
आज के दौर में "फ़तह अल-ग़ैब" जैसी किताबें हमें हक़ का रास्ता दिखाने का ज़रिया बन सकती हैं। यह किताब हर उस इंसान के लिए है जो अल्लाह के करीब जाना चाहता है और अपनी रूह को ग़लतियों से पाक करना चाहता है।
Comments
Post a Comment