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जिन्न

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*_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_* *_ *जिन्न* *_________________________________________* *जिन्न का माने है छिपी हुई मख़लूक़ चूंकि ये नज़र नहीं आते इस लिए इन्हें जिन्न कहा जाता है,ये आग से पैदा किये गए हैं,इनमे कुछ को ये ताक़त मिली है कि जो शक्ल चाहें इख़्तियार कर लें,ये इंसान ही की तरह अक़्ल वाले ज़ी-रूह और जिस्म वाले होते हैं और खाते-पीते जीते-मरते हैं,इनमे मुसलमान और काफिर भी होते हैं मगर मोमिन के मुकाबले काफिरों की तादाद बहुत ज्यादा है और काफ़िरों में यहूदी,नसरानी,मुशरिक,राफजी,ख़ारजी,जबरिया,क़दरिया,बिदअती सब ही होते हैं,जिस तरह इंसानों में सहाबी हुए हैं उसी तरह इनमें भी कई सहाबी हैं जिन्होंने ईमान की हालत में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ज़ियारत की है,सहाबी होने वाले जिन्नों की तादाद में बहुत इख़्तिलाफ़ है* *7,9,15,60,300,6000,12000 तक की रिवायत मौजूद है,और इनमें से सभी मोअतबर हो सकती है क्योंकि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के हाथों पर अक्सर जिन्नात आकर ईमान लाते रहे हैं,खुद इब्लीस लईन का परपोता हाम्मा बिन हीम बिन लाक़ीस बिन इब्लीस हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर ईमान लाया* *हां ...

_🍛 *✧​ कूंडे की नियाज़ ✧​* 🍛_

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_🍛 *✧​ कूंडे की नियाज़ ✧​* 🍛_ _माहे रजब में *"हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु"* को ईसाले सवाब के लिए *कूंडे* भरे जाते हैं यह जाइज़ है।_ _अक्सर लोग *22 रजब* को *कूंडे* की *नियाज़* करते हैं और कहते हैं कि उस दिन *"इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हू"* का *विसाल* हुआ था।_  _मगर यह यह कहना के *22 रजब* को आपका *विसाल* हुआ ग़लत है। अस्ल यह है कि हज़रत का विसाल *15 रजब* को हुआ था न कि *22 रजब* को।_ _हाँ! *22 रज्जब* को *सहाबी-ए-रसूल "हज़रत अमीरे मुआ़विया रदियल्लाहु अन्हु"* का *विसाल* हुआ है, और *शिया* और *राफज़ी* लोग *"हज़रत अमीरे मुआ़विया"* के *गुस्ताख़* ,और सख़्त *नफ़रत* करते हैं।_  _तो *शिया* इस तारीख़ में *"हज़रत अमीरे मुआ़विया रज़ियल्लाहु अन्हु"* के *विसाल* की *ख़ुशी* में *ईद* मनाते हैं और *सुन्नियों* को धोका देने के लिये उसे *"हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ रज़ियल्लाहु अन्हु"* की *नियाज़* कहते हैं।_ _पता चला कि *"हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़"* की फ़ातिहा *15 रजब* को तो (ज़रूर) दिलानी चाहिए और अगर कोई *22 रजब* को दिलाता है तो *ग़लत* नही...