17 रमजान "जंग-ए-बदर" ।
17 रमज़ान ये वो अज़ीम दिन है जब इस्लामी तारीख की पहली बड़ी जंग "जंग-ए-बदर" में हज़रत मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) और उनके 313 सहाबा ने कुफ़्फ़ार ए क़ुरैश अबु ज़हल,अबू सुफियान की एक बड़ी फौज पर फ़तह हासिल की थी।
इस जंग में सिर्फ 313 सहाबी, कुफ़्फ़रो पर भारी पड़े थे। हज़रत हमजाرضي الله عنه और अली رضي الله عنهमुसलमानों को लीड कर रहे थे। हज़रत अली ने अकेले 36 कुफ्फारों को जहन्नाम का रास्ता दिखाया था। इस जंग में 14 सहाबी भी शहीद हुए।
ये वो वक़्त था जब अल्लाह की रहमत जमीन पर उतर आई थी। अल्लाह के फ़रिश्ते कुफ़्फ़रो पर कहर बनकर टूटे थे।
उस वक़्त मुसलमानों के ज़ोक़ का ये आलम था कि की नव उम्र सहाबा आप صلى الله عليه وسلم से आंखें बचाते थे कही उनको कम उम्र की वजह से वापस न भेज दिया जाय।
इस जंग में मुसलमानों की फतह हुई अबु सुफियान बच निकला और वापस जाकर क़ुरैश को बरगलाना शुरू कर दिया।
ये वही वक़्त था जहाँ से यहूदी, मुसलमानों के खुले दुश्मन हो गए। यहूदी इस इंतेज़ार में थे कि कुफ़्फ़र की फौज़ आसानी से चंद मुसलमानों को खत्म कर देगी पर ऐसा नही हुआ। यहूदियों को दुख हुआ और अबू सूफ़ियान से जा मिले और इनके ग़म में मातम भी मनाया।
अल्लाह उन सहबियों की शहादत के सदके तुफ़ैल में हमारी मग़फ़िरत आता फरमाए
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