आप_की_शहादत ( हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु)

꧁꧂꧁꧂﷽‎꧁꧂꧁꧂

#आप_की_शहादत* 

*बुखारी शरीफ में है कि हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने बारगाहे इलाही में दुआ कीः- या इलाहल आलमीन ! मुझे अपनी राह में शहादत अता फरमा और अपने रसूल के शहर में मुझे मौत नसीब फरमा*            ( _तारीखुल खुलफा : 90_ ) 

*हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की दुआ इस तरह कबूल हुई कि हज़रत मुगीरा बिन शोअबा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के मजूसी मुलाम अबू लूञ्लू ने आप से शिकायत की कि उस के आका हज़रत : मुगीरा रोज़ाना उस से चार दिरहम वसूल करते हैं आप उस में कमी करा दीजिये , आप ने फरमाया कि तुम लोहार और बढ़ई का काम खूब अच्छी तरह जानते हो और नक्काशी भी बहुत उम्दा करते हो तो चार दिरहम यौमिया तुम्हारे ऊपर ज़्यादा नहीं हैं , इस जवाब को सुन कर वह गुस्से से तिलमिलाता हुआ वापस चला गया , कुछ दिनों के बाद हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने उसे फिर बुलाया और फरमाया कि तू कहता था कि “ अगर आप कहें तो मैं ऐसी चक्की तैयार कर दूं जो हवा से चले " उसने तेवर बदल कर कहा कि हां , मैं आप के लिये ऐसी चक्की तैयार कर दूंगा जिस का लोग हमेशा ज़िक्र  किया करेंगे । जब वह चला गया तो आप ने फरमाया कि यह लड़का मुझे कत्ल की धमकी देकर गया है । मगर आप ने उस के खिलाफ कोई काररवाई नहीं की । अबू लुञ्लू ने आप के कत्ल का पुख्ता इरादा कर लिया , एक खन्जर पर धार लगाई और उस को ज़हेर में बुझा कर अपने पास रख लिया , हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फज्र की नमाज़ के लिये मस्जिदे नबवी तशरीफ ले गए और उनका तरीका था कि वह तक्बीर तहरीमा से पहले फरमाया करते थे कि सफें सीधी कर लो , यह सुन कर अबू लुञ्लू आप के बिल्कुल करीब सफ में आकर खड़ा हो गया और फिर आप के कंधे और पहलू पर खुन्जर से दो वार किया जिस से आप गिर पड़े , उस के बाद उस ने और नमाज़ियों पर हमला करके 13 आदमियों को जख्मी कर दिया , जिन में से बाद में छः अफ्राद का इन्तेकाल हो गया , उस वक़्त जब्कि वह लोगों को जख्मी कर रहा था एक इराकी ने उस पर कपड़ा डाल दिया और जब वह उस कपड़े में उलझ गया तो उस ने उसी वक़्त खुदकुशी कर ली । चूंकि अब सूरज निकलना ही चाहता था इस लिये हज़रत अब्दुर रहमान बिन औफ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने दो मुख़्तसर सूरतों के साथ नमाज़ पढ़ाई । और हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को आप के मकान पर लाए , पहले आप को नबीज़ पिलाई गई , जो ज़ख़्मों के रास्ते से बाहर निकल गई , फिर दूध पिलाया गया मगर वह भी ज़ख़्मों से बाहर निकल गया । किसी शख्स ने आप से कहा कि आप अपने फर्ज़न्द अब्दुल्लाह को अपने बाद ख़लीफा मुकर्रर कर दें , आप ने उस शख्स को जवाब दिया कि अल्लाह तआला तुम्हें गारत् करे , तुम मुझे ऐसा गलत मशवरा दे रहे हो जिसे अपनी बीवी को सहीह तरीके से तलाक देने का सलीका भी न हो , क्या मैं ऐसे शख्स को खलीफा मुकर्रर कर दूं ? फिर आप ने हज़रत उस्मान , हज़रत अली , हज़रत तल्हा , हज़रत जुबैर , हज़रत अब्दुर रहमान बिन औफ और सअद रज़ियल्लाहु तआला अन्हुम की इन्तिख़ाबे खलीफा के लिये एक कमेटी बना दी और फरमाया कि इन्हीं में से किसी को खलीफा मुकर्रर किया जाए । उस के बाद आप ने अपने साहिबज़ादे हज़रत अब्दुल्लाह से फरमाया कि बताओ हम पर कितना कर्ज़ है , उन्हों ने हिसाब करके बताया कि तक्रीबन 86 हज़ार क़र्ज़ है , आप ने फरमाया कि यह रकम हमारे माल से अदा कर देना , अगर उस से पूरा न हो तो बनू अदी से मांगना और अगर उन से भी पूरा न हो तो कुरैश से लेना , फिर आप ने फरमाया कि जाओ हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा से कहो कि उमर अपने दोनों दोस्तों के पास दफ्न होने की इजाज़त चाहता है हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर, उम्मुल मोमिनीन हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा के पास गए और अपने बाप की ख्वाहिश को ज़ाहिर की , उन्हों ने फरमाया कि यह जगह तो मैं ने अपने लिये महफूज़ कर रखी थी , मगर मैं आज अपनी ज़ात पर हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को तरजीह देती हूं , जब आप को यह ख़बर मिली तो आप ने खुदा का शुक अदा किया । 26 ज़िलहिज्जा 23 हिजरी , बुध के दिन आप ज़ख्मी हुए , तीन दिन बाद 10 बरस , छः माह चार दिन उमूरे ख़िलाफत को अंजाम देकर 63 साल की उम्र में वफात पाई* ।  
_इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन_

*वह उमर जिस के अदा पे शैदा सकर* 
_उस खुदा दोस्त हज़रत पे लाखों सलाम_

*तर्जुमाने  नबी  हमजुबाने नबी* 
_जाने शाने अंदालत पे लाखों सलाम_ 

*हज़रत उर्वा बिन जुबैर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि खलीफा वलीद बिन अब्दुल मलिक के ज़माने में जब रौज़ए मुनव्वरा की दीवार गिर पड़ी और लोगों ने उस की तामीर ( 87 हिजरी में ) शुरू की तो ( बुनियाद खोदते वक़्त ) एक कदम ( घुटने तक ) ज़ाहिर हुआ तो सब लोग घबरा गए और लोगों को ख्याल हुआ कि शायद रसूलुल्लाह का क़दम मुबारक है और वहां कोई जानने वाला नहीं मिला तो हजूरत उर्वा बिन जुबैर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने कहा खुदा की कसम यह हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम का कदम शरीफ नहीं है बल्कि यह हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का कदम मुबारक है । ( बुख़ारी शरीफः 1 / 186 )* 

*खुलासा यह कि तकरीबन 63 बरस के बाद हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का जिस्मे मुबारक बदस्तूर साबिक रहा , उसमें किसी किस्म की तब्दीली नहीं हुई थी और न कभी होगी* । 
_एक शायर ने खूब कहा है कि_ 

*जिंदा हो जाते हैं जो मरते हैं उस के नाम पर* 
_अल्लाह ,अल्लाह मौत को किस ने मसीहा कर दिया_ 

 _*व सल्लल्लाहु तआला अला खैरि खल्किही सैय्यिदिना मुहम्मदिव् व अला आलिही व अस्हाबिही व ज़िर्रियांतिही अज्मईन बिरहमतिक या अर्हमर् राहिमीन*_ ।

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