जज़बात

जज़बात बहुत अच्छी चिज़ है ,
जज़बातो से ही कुरबानी दी जाती है 
जज़बातो से ही तहफ्फुज़ होता है 
जज़बातो से ही शहादत का दर्जा मिलता है 

लेकिन यही जज़बात जब जिहालत ,लाइल्मी ,बेउसुली ,बेतरतीबी ,लाशाऊरी लाहोशी कि चादर ओढ कर नारा लगाते है तो फिर वही जज़बात दीन नामुस ए रिसालत ,और दीने इस्लाम पर तनकीद और तंज तिश्ने ताने ,और दीन पर हसी उङाने का ज़रीया भी बन जाते है 

मिसाल के तौर पर - आप के अन्दर शहादत का दर्जा पाने के बहुत जज़बात है बहुत जज़बात है 
आप शहादत के नशे मे इतना चुर है कि जब आपको पेट का मर्ज़ हुवा तो आपने अपने जज़बात के नशे मे इस कदर होश खो गये कि अपने मर्ज़ का इलाज नही किया कि पेट कि बिमारी से मरने वाले को शहादत का दर्जा मिलता है ये कहते हुवे आप बिना इलाज किये ही मर गये 

इससे पता है क्या हुवा ,,आपने जज़बात के नशे मे ईस्लाम के शहादत वाले उसुल को तो याद रखा लेकिन इस्लाम मे बिमारी के इलाज करवाने वाले उसुल को ताक पर रख दिया जो सुन्नत व हदीस से साबित है 

जिससे आपको शहादत भी ना मिली ,,और दुनिया मे 
इस्लाम का चेहरा भी मस्ख हुवा ,नास्तिको ,सेक्युलर टाईप लोगो को कहने व हसने का मौका मिल गया कि देखो इस्लाम मे इलाज करने से रोका गया है 

इसलिये जज़बात रखिये ,,लेकिन जज़बातो को जहालत व लाइल्मी ,बेउसुली ,बेतरतीबी ,ला शाऊरी ,बेढंगीयत कि चादर ना उढाईये।

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