नए साल की मुबारकबाद देना ‎केसा।



नए साल की मुबारकबाद देने में कोई हर्ज नही है...
कैलेंडर दो होते है 1 शम्सी और 1 क़मरी....शम्सी यानी सूरज से चलने वाला और क़मरी यानी चांद से चलने वाला....

जहाँ शम्सी साल 365 दिन का होता वही क़मरी यानी इस्लामी साल कमोबेश 355 दिन का होता है...(हर साल औसतन 10-11 दिन का फ़र्क़ आता है) ये सूरज भी अल्लाह ही ने पैदा किया है मुसलमानों के लिए, शम्सी कैलेंडर से हमारी मस्जिदों में लगी हमारे शहर की जंत्री बनती है, जैसे तुलु आफ़ताब, ज़वाल , शुरू ज़ुहर, शुरू असर, ग़ुरूब आफ़ताब वगैरह...(मिसाल के तौर पर जब साया दोगुना हो जाता है तो असर का वक़्त मअलूम हो जाता है....)

हमारी सेहरी करना और रौज़ा खोलना ये शम्सी कैलेंडर ही से ते होता है, हत्ता के रौज़ा, नमाज़, सहरी, अफ़्तीयार सब में शम्सी कैलेंडर शामिल है, हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी, सैलेरी, बिल्स, किराए, DOB, स्कूल कॉलेज की डिग्रियो में जन्म तारीख़ सब इन्ही महिनों से चलते है जनाब....हिंदुस्तान में तो जिधर सूरज डूबता है उससे किब्ला का पता आसानी से लगाया जा सकता है...और ये 12 महीने जब से आसमान, ज़मीन, दुनिया बनी तब से है आप देखिए सूरे : तौबा आयत नम्बर 36 में रब तआला इरशाद फ़रमाता है तर्जमा :- *" बेशक़ महीनों की गिनती अल्लाह के नज़दीक बारह महीने है,अल्लाह की किताब में, जब से उसने आसमान ओ ज़मीन बनाये..."*

अब जब ये साबित हो गया कि ये साल महीने तब से है जब ईसाई क्या कोई इंसान न था रुये ज़मीन पर तो इसपर सिर्फ़ ईसाइयों का हक़ कैसे हो गया ?? ये की उन्होंने नाम रख दिये महीनों के बस ??? इन्होंने आदम अलैहिस्सलाम का नाम एडम रख दिया या ईसा अलैहिस्सलाम का नाम ईशु मसीह रख दिया तो क्या हमने इन मुक़द्दस पैग़म्बरों से दूरी अख़्तियार कर ली ?? नही न हम उनकी तरह नही मानते मआज़ अल्लाह बस, नया साल की मुबारकबाद भी देंगे अहद भी करेंगे नेकियों की नीयत भी करेंगे लेकिन उनकी तरह नही हमारे पास शरीअत है अल्हम्दुलिल्लाह...

तो भाइयों साल हमारा, महीने हमारे, सूरज हमारा, हमारे रब ने इसे पैदा किया तो ये साल सिर्फ़ इनका कैसे हो गया ?? लिहाज़ा जो काम शरीअत ने मना नही किये उसे बिला वजह ख़ुद पर लागू करके क्यों ज़िन्दगी तंग कर रहे हो ? इस्लामी तारीख़ से कितने लोग चलते है ये सबको पता है,मेरे पास कॉल आते है हाफिज़ जी उर्दू की क्या तारीख़ है आज फ़ला तारीख कब होगी ? वगैरह-वगैरह.... तो दीजिये मुबारकबाद और शान से कहीये की ये साल भी हमारा है और वह साल भी हमारा है....

हुज़ूर ताजे शरीअत अलैहिर्रहमा 👑 से भी जब नए साल की मुबारकबाद देने के मुतअल्लिक़ सवाल हुवा तो आपने फ़रमाया *कोई हर्ज नही है , खुराफ़ात न जाइज़ है..

Comments

Popular posts from this blog

मसाइले क़ुर्बानी

हज़रत ग़ौस-ए-आज़म रहमतुल्लाह अलैह

रुहानी बीमारियों के 6 कि़समें हैं,