हज़रत उस्मान रज़ी अल्लाहो अन्ह की शहादत।
*हज़रत उस्मान रज़ी अल्लाहो अन्ह की शहादत*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
इब्ने सबा यहूदी की साज़िश और मरवान की शरारत से अहले बसरा को कूफे और मिस्र वाले हज़रत उस्मान रज़ी अल्लाहो अन्ह के बेगुनाह खून से हाथ रंगे बगैर ना रह सके चुनाँचे वो लोग हज़ारों की तअदाद में बलवा करके आ गए उस वक़्त सहाबा-ए-इक्राम ने अर्ज़ किया , *या अमीर-उल-मोमिनीन !* _आप हम को लड़ाई का हुक्म दीजिए ताके हम उनको मार भगायें ,आपने फ़रमाया के तुमको कसम है अल्लाह की ! मेरे लिए किसी मुसलमान का एक क़तरा खून ना गिराना ,मैं कयामत के दिन खुदा को क्या जवाब दूंगा ?_
सहाबाइक्राम ने कहा आप मक्का मोअज्जमा चले जाईये ,या मुल्क शाम चले जाईये वहाँ हज़रत मुआविया रज़ी अल्लाहो अन्ह हैं और उनका लश्कर है आपने फ़रमाया दोस्तो ! *मैं आखरी वक़्त में अपने नबी के मज़ार को किस तरह छोड़ कर चला जाऊँ ? हाँ ! मस्जिदे नबव्वी में चलता हूँ और उन लोगों से पूछता हूँ के तुम बिला वजह मुझे क्यों कत्ल करना चाहते हो।*
चुनाँचे आप तशरीफ़ ले गए और उन बलवाईयों से खिताब फ़रमाया के ऐ मिस्री लोगो ! तुम मुझे को क्यों कत्ल करते हो ,मेरी उम्र थोड़ी सी रह गई है मैं खुद ब खुद ही इन्तिकाल कर जाऊँगा कसम है खुदा की जब कभी लोगों ने किसी नबी को नाहक क़त्ल किया है तो हज़ारहा आदमी इस नबी के बदले में कत्ल हुए और मैं खलीफत-सय्यद-उल-मुरसलीन हूँ मेरे बदले में अस्सी हज़ार कत्ल होंगे अगर मुसलमान मेरे कातिलों से बदला ना लेंगे तो आसमान से अल्लाह तआला पत्थर बरसा कर मेरे कातिलों को हलाक कर देगा ,देखो ऐसा ना करना ,खुदा की कसम इस वक़्त तो तुम मेरी मौत चाहते हो और मेरे कत्ल होने के बाद यूं तमन्ना करोगे के काश उस्मान का एक एक सांस एक बरस की बराबर उम्र का होता,उस वक्त एक बलवाई ने आपके हाथ का असा जो हुज़र सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम का तबरूक था *हज़रत के उस्मान के हाथ से छीन कर अपने घुटने पर रख कर तोड़ दिया, फौरन उसके घुटने में एक फोड़ा पैदा हुआ और शाम तक उसका सारा बदन गल कर मर गया*
_अब बलवाई सेंकड़ों की तअदाद में हज़रत उस्मान के गिर्द आकर जमा हो गए और मकान को घेर लिया और ये कहा अब हम आपको क़त्ल किए बगैर ना छोङगे,सब का आना जाना अन्दर का बन्द किया ,हज़रत उस्मान को नमाज़ के वास्ते भी घर से ना निकलने दिया कोई चीज़ खाने की भी अन्दर ना जाने दी यहाँ तक के आपका पानी भी बन्द किया जो कुछ घर में था वो सब खत्म हुआ फिर सारा घर प्यासा मरने लगा_
*जब सात दिन बराबर इसी तरह गुज़रे और किसी को एक क़तरा भी पानी का ना मिला तब हज़रत उस्मान ने अपने मकान की खिड़की से सर बाहर निकाला और आवाज़ दी के यहाँ अली हैं ? किसी ने जवाब ना दिया , फरमाया सअद हैं ? फिर किसी ने जवाब ना दिया ,हज़रत उस्मान ने फ़रमाया के ऐ उम्मते मोहम्मदिया !*
_रोम फारस के बादशाह भी अगर किसा को कैद करते हैं ज़रूर कैदी को दाना पानी देते हैं ,ऐ लोगो ! मैं तुम्हारा ऐसा गुनेहगार कैदी हूँ के मुझ को पानी भी नहीं देते। है कोई जो अल्लाह के वास्ते उस्मान को एक पियाला पानी का दे उसका बदला मैं पहला पियाला जो मुझे को मेरे नबी से होजे कोसर पर मिलेगा उसको दूंगा।_ वहाँ होजे कोसर की किस को परवाह थी मगर जब हज़रत अली को ख़बर हुई ,तीन मशकें आपने भरकर कमर से तलवार बाँधी और सर पर आहँ हज़रत सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम का अमामा बाँध कर पानी लेकर चले और लोगों से कहा के ये काम तो काफिर भी नहीं करते जो काम तुम ने किया है पानी बन्द ना करो , *देखो गजबे इलाही नाज़िल हो जाएगा।* मगर उन ज़ालिमों ने मश्कों में बरछे मारकर पानी निकाल दिया इतने मे जनाब _उम्म-उल-मोमिनीन एक खच्चर पर सवार होकर और एक पानी की मश्क साथ लेकर आईं और ये ख्याल किया के कमबख्त मेरा तो अदब करेंगे और लोगों से कहा के उनी उमय्या की कुछ अमानतें उस्मान के पास है ज़रा में उनको पास जाना चाहती हूँ ताके वो अमानत ले आऊँ ,ये सुनकर बलवाई बोले के ओ झूटी !_ ये कहकर खच्चर के मुंह पर लकड़ी मारी और चार जामे का बन्द काट दिया खच्चर आपको ले भागा ,हज़रत उम्म-उल-मोमिनीन गिरते गिरते बचीं।
ये वाकेया देखकर लोग घबराए और ये कहा ,खुदा तुम्हारा नास करे अज़वाजे नबी के साथ भी ऐसी बुरी तरह पेश आने लगे ,अहले मदीना को बहुत गुस्सा आया और तलवारें लेकर हज़रत उस्मान से अर्ज़ किया के अब तो अजवाजे नबी की भी बेहुर्मती होने लगी ऐ उस्मान! अब तो लड़ने की इजाजत दीजिए , *हज़रत उस्मान ने फ़रमाया ,तुम मेरे लिए अपनी जानें जाए ना करो, मुझे अगर लड़ना मंज़र होता तो अब तक हज़रहा फौज शाम और इराक से मंगवाता ,मैं लड़ना हरगिज़ नहीं चाहता ,सब को कसमें देकर वापस कर दिया* _फिर जब कुछ दिन गुज़रे और हज़रत उस्मान को प्यास की बहुत सख़्त तकलीफ हुई तो आपने फिर अपना मुंह खिड़की से बाहर निकाला और फ़रमाया:-_ *तुप जानते हो जब हुजूर सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम मदीना मुनव्वरह में आए थे तो यहाँ पानी मुसलमानों को मोल मिलता था और कुँआ यहूद के कब्जे में था। हुज़र ने फ़रमाया कौन है जो इस कुएँ को ख़रीद दे और इसके बदले में जन्नत का चश्मा ले ले ,मैंने वो कुँआ 35 हज़ार में ख़रीदकर तुम्हारे ऊपर वक्फ कर दिया वही आज मैं हूँ के चालीस दिन से पानी के लिए उस्मान के बच्चे रोते हैं और उन्हें पानी नहीं मिलता ,लोगो ! तुम को मालूम है के मस्जिद नबव्वी इब्तिदा में निहायत तंग थी मैंने पच्चीस हज़ार रुपया देकर मकान और ज़मीन देकर मस्जिदे नबव्वी में शामिल की ,आज मैं ऐसा हो गया के तुम मुझ को इसी मस्जिद में दो रकातें पढ़ने से रोकते हो ,लोगो ! कयामत के रोज़ क्या उज्र करोगे ?*
_पचास दिन तक हज़रत उस्मान उसी मकान में कैद रहे ,इस अर्से में बराबर रोजे रखते रहे एक रात आपने ख्वाब में देखा के जनाब रिसालत मआब सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम अपने मजार शरीफ से बाहर तशरीफ़ लाए और अबुबक्र और उमर रज़ी अल्लाहो अन्हुमा आपके साथ हैं ,हज़रत उस्मान के पास आए और फरमाया_ *ऐ उस्मान !* क्या तुम्हें प्यास बहुत लगी है ? तुमने चालीस दिन तक रोज़ा रखा ,ऐ उस्मान ! कल रोज़ा तुम हमारे पास आकर खोलोगे ,हम होजे कोसर से तुम्हारा रोज़ा खुलवाएंगे ,ऐ उस्मान ! कल तुम शहीद किए जाओगे ,और तुम्हारा खून का पहला क़तरा आयत *फसायकफीकाहुमुल्लाहू वहुवस्समी-उल-अलीम* पर पड़ेगा।
_ये ख्वाब देखकर हज़रत उस्मान ने अपने मकान का दरवाजा खोल दिया और फरमाया ,आने दो आज तो मेरी दअवत हुज़र होजे कोसर पर कर गए हैं ,दरवाजा खोलते ही बलवाई अन्दर घुस आए और इस ख़याल से के कोई दरवाज़ा फिर बन्द ना कर दे किवाड़ों में आग लगा दी ,दरवाज़ के ऊपर छप्पर पड़ा था उसको भी आग लग गई ,घर वाले घबरा गए मगर हज़रत उस्मान उस वक़्त नमाज़ पढ़ते थे और सूरत ताहा शुरू थी घर में आग लग रही थी मगर जनाब की नमाज़ या किराअत पढ़ने में जरा भ फर्क या लुकनत ना थी यहाँ तक के नमाज़ से आप फारिग हुए ,कुरआन मंगाया सामने रखा वही आयत निकली ,एक आदमी आपके कत्ल के इरादे से आप के पास आया,_ आपने फ़रमाया तू मुझको कत्ल ना कर क्योंके नबी अलेहिस्सलाम ने तेरे लिए दुआ की थी के अल्लाह तुझ को उस्मान के खून में हाथ रंगने से बचाए क्या तू मेरे नबी की दुआ के खिलाफ करेगा ? इस शख्स को तो ये बात सुनते ही पसीना आया और शर्मिंदा होकर घर से निकल गया ,हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम रजी अल्लाहो अन्ह इस मौके पर आए और फरमाया, *ज़ालिमो! खबरदार!* _उस्मान का खून ना करो ,देखो अल्लाह तआला एक उस्मान के बदले अस्सी हज़ार को क़त्ल करेगा ,उस वक़्त तक मदीना मुनव्वरह की हिफाज़त फरिश्ते करते हैं जिस वक़्त तुम उस्मान को कत्ल करोगे फरिश्ते चले जाएंगे ,_
*एक ज़ालिम बोला ,ओ यहूदी बच्चे ! तू क्या जाने ,जा अपना काम कर ,हज़रत उस्मान ने फ़रमाया के तुम सब्र करो।*
_इतने में सोदान बिन हमरान एक शख्स आया और कहने लगा ,ओ उस्मान तू किस दीन पर है ? आपने फ़रमाया मैं दीने मोहम्मदी पर हूँ ,उसने बड़े जोर से आपका गला घोंटा ,फिर एक और ज़ालिम आपके पास आया और आपके चहरे पर तमाचा मारा और तलवार आपकी जानिब उठाई आपने हाथ से तलवार को रोका ,हाथ कट गया ,फरमाया ये वो हाथ था जो वही लिखा करता था आज ये राहे मौला में कटे हैं ,ये वो हाथ है जिसने सय्यद-उल-मुरसलीन के हाथ पर बैत की जिस दिन से ये हाथ नबी के हाथ से मिला था किसी गंदी चीज़ को इस हाथ ने छुआ था ,_ लोगो ! ज़रा इस हाथ को अच्छी तरह दफ्न करना,उस ज़ालिम ने कहा लो बुलाओ अपने मददगारों को ,फ़रमाया मेरा जो मददगार है मेरे पास है ,फिर एक और ज़ालिम आया उसने तीन जख्म आपके माथे पर और तीन छाती पर बरछी की नोक से किए उस वक्त जो करआन शरीफ सामने रखा था और उसे आप पढ़ रहे थे उस पर पहला कतरा आपके खून का जो पड़ा वो इस आयात पर पड़ा *फसायकफीकाहुमुल्लाहू* "ऐ उस्मान! तेरा बदला लेने को तेरा अल्लाह काफी है" आप *अशहदअंल्लाइलाहा इल्लललाहू व अशहदअन्ना मोहम्मदन रसूल अल्लाह* कहते हुए ज़मीन पर गिरे ,उस ज़ालिम ने आपकी पसलियों पर कूदना शुरू किया ,आपकी तीन पसलियाँ टूट गईं ज़ालिमों ने आपके अजवाज का जेवर उतारा और घर का सब असबाब लूट लिया।
*📓तारीख़-उल-खुलफा,सफा 112,सीरत-उल-सालेहीन, सफा 101*
*👉🏼सबकः-* अब्दुल्लाह बिन सबा यहूदी की साज़िश रंग लाई और अहले मिस्र उसके मंसूबे का शिकार होकर मुसलमानों में एक अज़ीम फितने के जहूर का मौजिब बन गए ,ये फितना फिर हज़रत अली रजी अल्लाहो अन्ह के दौर में और भी ज्यादा फैला और यहूदियत मुख़्तलिफ रूपों में ज़ाहिर हुई और ये भी मालूम हुआ के हज़रत उस्मान रजी अल्लाहो अन्ह को अपने नबी करीम सल-लल्लाहो अलेह व सल्लम से अपनी शहादत का सारा किस्सा मालूम हो चुका था और आप राजी बरज़ाऐ इलाही थे इसी वास्ते आपने सहाबाइक्राम को उनसे लड़ने की इजाज़त ना दी और ना ही शाम व इराक से कोई फौज मंगवाई और ये भी मालूम हुआ के इब्ने सबा यहूदी की तालीम से बलवाईयों के दिल में ना सहाबा की इज्ज़त रही और ना अज़वाज-उन्नबी की हुर्मत और ये भी मालूम हुआ के हज़रत इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहो अन्ह की शहादत शरीफा से हज़रत उस्मान रज़ी अल्लाहो अन्ह की शहादत भी कुछ कम नहीं बल्के उससे भी ज्यादा दर्दनाक है करबला में ज़ालिमों ने चन्द दिन पानी बन्द किया था मगर यहाँ चालीस रोज़ से ज़्यादा पानी बन्द रहा ,अगर हज़रत इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहो अन्ह मज़लूम हैं तो हज़रत उस्मान रज़ी अल्लाहो अन्ह उनसे भी बढ़कर मज़लूम हैं। रजी अल्लाहो अन्हुमा
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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