ईद ‎मिलदुन् ‎नबि ‎ ‎पर् ‎खुशी ‎बनाना।

कहते हो इस दिन वफात हुवी ईसलिये खुशी ना मनाओ ,जश्न ना मनाओ ,ईद ना मनाओ अरे नादानो नबीयो कि वफात भी जिस दिन होती है वो दिन भी अफज़ल होता है 
अबु दाऊद कि हदीस मे जुम्मे कि अफज़लियत ब्यान करते हुवे नबी ए करीम सल्लल्लाहू अलैह व सल्लम ने फरमाया कि इसी दिन आदम कि विलादत हुवी और इसी दिन विसाल हुवा 
तो अगर नबीयो कि विसाल का दिन अगर माज़ अल्लाह मातम करने का होता तो जुम्मा हरगिज़ अफज़ल ना होता 
और वैसे भी नबी ए करीम और तमाम नबी अपने जसद ए मुबारक के साथ जि़न्दा है और उन्हे रिज़्क दिया जाता है पढो हदीस ए मुबारक 👇👇
حَدَّثَنَا عَمْرُو بْنُ سَوَّادٍ الْمِصْرِيُّ ، حَدَّثَنَا عَبْدُ اللَّهِ بْنُ وَهْبٍ ، عَنْ عَمْرِو بْنِ الْحَارِثِ ، عَنْ سَعِيدِ بْنِ أَبِي هِلَالٍ ، عَنْ زَيْدِ بْنِ أَيْمَنَ ، عَنْ عُبَادَةَ بْنِ نُسَيٍّ ، عَنْ أَبِي الدَّرْدَاءِ ، قَالَ : قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ : " أَكْثِرُوا الصَّلَاةَ عَلَيَّ يَوْمَ الْجُمُعَةِ فَإِنَّهُ مَشْهُودٌ تَشْهَدُهُ الْمَلَائِكَةُ ، وَإِنَّ أَحَدًا لَنْ يُصَلِّيَ عَلَيَّ إِلَّا عُرِضَتْ عَلَيَّ صَلَاتُهُ حَتَّى يَفْرُغَ مِنْهَا " ، قَالَ : قُلْتُ : وَبَعْدَ الْمَوْتِ ، قَالَ : " وَبَعْدَ الْمَوْتِ ، إِنَّ اللَّهَ حَرَّمَ عَلَى الْأَرْضِ أَنْ تَأْكُلَ أَجْسَادَ الْأَنْبِيَاءِ ، فَنَبِيُّ اللَّهِ حَيٌّ يُرْزَقُ " .

सनद के बाद यानी - नबी ए करीम ने फरमाया कि तुम लोग जुम्मे के दिन मुझ पर कसरत से दुरुद भेजा करो क्योकि जुम्मे को फरिश्ते हाज़िर होते है और मुझ पर पढे जाने वाले दरुद को मुझ पर पेश कर देते है ,
सहाबा ने पुछा या रसुल्ल्लाहा क्या बादल मौत भी ? 
तो आपने फरमाया हाँ बादल मौत भी क्योकि ज़मिन पर अम्बिया के जसद हराम है कि वो खाए और उन्हे अल्लाह रिज्क देता है ( इब्ने माजा हदीस 1637)

अब बताओ रिज्क ज़िन्दा को मिलता है या मुर्दा को ? 
बेशक ज़िन्दा को 
और रिज़्क रुह को चाहीये होता है या जसद को ? 
बेशक जसद को तो पता ये चला कि हुजुर ज़िन्दा है अपने जिस्म ए मुबारक के साथ तो क्यो हम मातम मनाए ? 
इसलिये हम विलादत मनाते है और मनाते रहेगे।

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