रास्ते_का_खतरा_टल_गया

रास्ते_का_खतरा_टल_गया*

सफीउद्दीन अबू अब्दुल्लाह हुसैन बिन अबी मन्सूर फरमाते हैं कि:
      "मैं शाम के शहर हमस में क़ियाम पज़ीर था मिस्र जाना चाहता था- मगर रास्ते में फिरंगियों,अरबों और गाजरियों की वजह से खतरा था- उनकी वजह से आमदो रफ्त का सिलसिला भी मुन्क़तअ (टूटा हुआ) था- इसी परेशानी के आलम में मुझे नींद आ गई- ख्वाब में नबी ए अकरम ﷺ की ज़ियारत से मुशर्रफ हुआ-"

मैंने अर्ज़ किया:
        "या रसूलल्लाह ﷺ ! मैं आपकी पनाह में हूं-"
आप ﷺ ने फ़रमाया:
         "तुम्हे खौफज़दा होने की ज़रूरत नहीं है-"
मैंने दोबारा अर्ज़ की तो आप ﷺ ने फ़रमाया:
      "तुम्हे किसका खतरा है? तुम किसी चीज़ का खौफ ना रखो-"

मैंने तीसरी बार अर्ज़ की कि:
       "दुश्मन बहुत ज़्यादा हैं-"
आप ﷺ ने फ़रमाया:
        "तुम्हे किस चीज़ का खतरा है?"
इसके बाद मैं बेदार हो गया- फिर हमस से मिस्र की तरफ आज़मे सफर हुआ- मिस्र पहुंचने तक मैंने और मेरे साथियों ने कोई परेशानी ना देखी- हालांकि हर तरफ क़त्लो गारत जारी थी..!!"

( حُجتُہ ﷲ علی للعالمین فی مُعجزات سیّد المُرسلین، جِلد: ٢، صفحہ: ٥٥٢ )

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