मौला_तआला_अपने_बन्दों_को_किस_तरह क़यामत_में_ज़िंदा_करेगा_उसको_जानने_के_लिए_ये_रिवायत_पढ़िये।
बुखारी व मुस्लिम शरीफ में है कि एक शख्स बहुत ही गुनाहगार था जब वो मरने लगा तो उसने अपनी औलाद को वसीयत की कि मेरे मरने के बाद मुझे दफ्न ना करना बल्कि जला देना और मेरी राख के 2 हिस्से करना एक हिस्से को हवाओं में उड़ा देना और दूसरे हिस्से को पानी में बहा देना, उसकी औलाद ने ऐसा ही किया मौला तआला ने हवा को हुक्म दिया कि इसके सारे ज़र्रात को मिला दो और पानी को हुक्म दिया कि इसके सारे ज़र्रात को मिला दो तो दोनों ने ऐसा ही किया, जब उसके जिस्म के दो हिस्से बन गये तो मौला ने दोनों को मिलाकर उसमें रूह लौटाई और फरमाया कि तेरी ऐसी वसीयत करने की क्या वजह थी हालांकि वो सब जानता है, तो बन्दा अर्ज़ करता है कि मौला मैं बहुत ही गुनहगार था मुझे यही खौफ था कि अगर मुझे अज़ाब दिया गया तो दुनिया का सबसे ज़्यादा अज़ाब मुझ पर होगा तो तेरे इसी खौफ से मैंने ऐसा फैसला किया तो मौला फरमाता है कि तेरे इसी खौफ ने आज तुझे बचा लिया और वो बख्शा गया क्योंकि खुदा से डरना ही तो सारी इबादत की अस्ल है,
📗 अहवाले बर्ज़ख,सफह 12,
*और ये रिवायत तो क़ुर्आन से साबित है,पढ़िये*👇
एक दिन हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने समुन्दर के किनारे एक मरे हुए शख्स को देखा जिसकी लाश को मछलियां खा रही थीं फिर कुछ देर बाद उसी लाश पर कुछ परिंदे भी आ गए और उन्होंने भी उस लाश को खाना शुरू कर दिया फिर कुछ जंगली जानवर आये और उन्होंने भी कुछ खाया, जब आपने ये मंज़र देखा तो आपके दिल में ये शौक़ पैदा हुआ कि मैं अपनी आंख से देखना चाहता हूं कि मौला तआला किस तरह मुर्दो को ज़िन्दा फरमायेगा और आपने बारगाहे खुदावन्दी में अपनी आरज़ू पेश कर दी, ख्याल रहे कि आपको खुदा की कुदरत पर शक नहीं था क्योंकि आपने काफिरो से खुदा की यही सिफत बयान की थी "कि मेरा रब वो है जो मारता है और जिलाता है" अगर आपको इस बात में शक होता तो हरगिज़ आप ऐसा नहीं कहते बल्कि सिर्फ अपनी आंखों से रब की कुदरत का मुशाहिदा करना चाहते थे, और ये भी ख्याल रहे कि अगर आपको इस बात में शक होता तो यक़ीनन आप पर खुदा का इताब होता मगर हरगिज़ ऐसा नहीं हुआ बल्कि मौला फरमाता है "ऐ खलील तुम 4 परिंदो को मिलाकर अलग अलग पहाड़ो पर रख दो फिर उनको बुलाओ तो वो तुम्हारे पास दौड़ते हुए आयेंगे" हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने मोर-कबूतर-मुर्ग-कव्वा इन चारों को कीमा बनाकर सबको एक साथ मिला दिया फिर उन सब में से 4 हिस्से करके 4 अलग अलग पहाड़ियों पर रख दिए और सबका सर अपने पास रख लिया,अब जिस परिन्दे को आप आवाज़ देते तो उसके पूरे अज्ज़ा चारो पहाड़ियों में से उड़ते हुए आते आपकी आंखों के सामने सब इकठ्ठा होता आप उस पर जैसे ही सर का टुकड़ा लगाते वो ज़िंदा होकर उड़ जाता,
📚 खज़ाइनुल इरफान,सफह 66,
अब क़यामत की निशानियों की तरफ बढ़ते हैं दीगर अम्बियाये किराम जब अपनी उम्मतों को क़यामत से डराते और क़यामत की निशानियां बताते तो फरमाते कि "क़यामत उस वक़्त तक क़ायम नहीं होगी जब तक कि इस दुनिया में नबी ए आखिरुज़्ज़मां सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम का ज़हूर ना हो जाये" और कुछ रिवायतों में आपका इस दुनिया ए ज़ाहिरी से विसाल फरमाना भी आया है,बहरहाल इतना तो साबित है कि क़यामत की निशानियों में सबसे पहली निशानी यही थी कि मेरे आक़ा सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम की आमद आमद होती और आपकी आमद हुए 1492 साल और फिर आपका ज़ाहिरी विसाल हुए भी 1429 साल हो चुके हैं, इसका मतलब ये है कि हम क़यामत से बस गिनती के चन्द साल ही दूर हैं मगर हाय रे मुसलमान मौत के मुहाने पर खड़ा है और आखिरत को छोड़कर दुनिया सजाने की फिक्र में लगा बैठा है, मौला तआला से दुआ है कि मुसलमानों को हिदायत अता फरमाये कि जल्द से जल्द अपनी आखिरत के बारे में सोचें वरना कहीं ऐसा ना हो जाये कि गफलत में ही मौत आ जाये और जब अपने गुनाहों पर पशेमान हों तो कुछ कर भी ना सकें, हुज़ूर सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम ने क़यामत से पहले उनकी निशानियां अपने बन्दों को बता रखी है इसको अलामाते क़यामत कहते हैं और इसकी भी दो किस्में हैं,
1. अलामाते सुग़रा - यानि छोटी निशानियां, इसका ज़हूर क़यामत आने से बहुत पहले ही शुरू हो जायेगा बल्कि शुरू हो चुका है
2. अलामाते कुबरा - यानि बड़ी निशानियां, इसका ज़हूर क़ुर्बे क़यामत में होगा और इसकी शुरुआत मुसलमानों की तमाम हुक़ूमतों के खातमे से होगी
📗 आसारे क़यामत,सफह 9
📚 अलमलफूज़,हिस्सा 1,पेज 92
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