*मसाइले क़ुर्बानी* *_______________________________________* *काना,लंगड़ा,लागर,बीमार,जिसकी नाक या थन कटा हो,जिसका कान या दुम तिहाई से ज्यादा कटी हो,बकरी का 1 थन या भैंस का 2 थन खुश्क हो ऐसे जानवरों की क़ुर्बानी नहीं हो सकती* *📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 139* *_क़ुर्बानी के जानवर को ऐब से खाली होना चाहिए अगर ज़्यादा ऐबदार है तो क़ुर्बानी नहीं होगी और अगर थोड़ा भी ऐब होगा तो क़ुर्बानी तो हो जाएगी मगर मकरूह है,जानवर की पैदाईशी सींग नहीं है तो क़ुर्बानी हो जायेगी मगर सींग थी और जड़ से टूट गयी क़ुर्बानी नहीं हो सकती अगर थोड़ी सी टूटी है तो हो जाएगी,भैंगे की क़ुर्बानी हो जायेगी मगर अंधे की नहीं युंही जिसका काना पन ज़ाहिर हो उसकी भी क़ुर्बानी जायज़ नहीं,बीमार इतना है कि खड़ा होता है तो गिर जाता है या इतना लागर है कि चल भी नहीं सकता क़ुर्बानी नहीं हो सकती,जानवर का कोई भी अज़ू अगर तिहाई से ज़्यादा कटा है तो क़ुर्बानी नहीं हो सकती,जिसके पैदाईशी कान ना हो या एक ही कान हो क़ुर्बानी नहीं हो सकती,जिसके दांत ही ना हो या जिसके थन कटे हों या एक दम सूख गए...
इस्लाम की तारीख़ में बहुत से ऐसे मुबारक हस्ती के नाम दर्ज हैं जिनकी तालीमात ने इंसानों को हक़ का रास्ता दिखाया और उन्हें गुमराही के अंधेरों से निकालकर रौशनी की तरफ़ लाया। उन्हीं बुज़ुर्गों में एक बड़ा नाम हज़रत शेख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह का है, जिन्हें दुनिया ग़ौस-ए-आज़म के नाम से जानती है। आपका असल नाम अब्दुल क़ादिर और लक़ब मोहय्युद्दीन है। आपकी विलादत रमज़ान 470 हिजरी में ईराक़ के शहर जीलान में हुई। आपने बचपन ही से इल्म-ओ-हिकमत और तक़वा-ओ-परहेज़गारी के वो जलवे दिखाए कि लोग आपको देखकर हैरत में पड़ जाते थे। आपकी परवरिश एक नेक ख़ानदान में हुई, और आप शुरू से ही नफ्स की मुख़ालिफ़त और इबादत में मशगूल रहते थे। जब आपने इल्म हासिल करने का इरादा किया तो बग़दाद तशरीफ़ ले गए। वहाँ आपने ज़माने के मशहूर उलमा से इल्म-ए-शरीअत की तालीम हासिल की। आपकी तालीम का असर इतना गहरा था कि जब आप किसी मजलिस में तशरीफ़ लाते तो लोगों के दिल हिल जाते, गुनहगार तौबा करने लगते और ग़ाफ़िलों के दिलों पर हक़ की रोशनी उतरती। आप न सिर्फ़ इल्म में माहिर थे, बल्कि अमल और अख़लाक़ में भी बुलंदी पर थे। आप रातों को...
(आला हजरत का तर्जुमान ए कुरान कन्ज़ुल ईमान कि खुसुसियात ) जैसा कि पिछली पोस्ट मे हमने बताया कि कुरान को दुसरी जुबानो मे ट्रान्सलेट ( तर्जुमा ) करने के दौ उसलुब यानी तरीके है एक हर लफ्ज़ के निचे उसका तर्जुमा यानी मतलब लिख दिया जाता है ( इसके बारे मे हम पिछली पोस्ट मे लिख चुके है ) अब दुसरा तरीका ये होता है कि कुरान कि आयत को मुहावरो मे ट्रान्सलेट करना यानी लफ्ज़ो के तर्जुमे को आगे पिछे करके पुरा एक वाक्य बनाना जैसे what is your name तुम्हारा नाम क्या है ,, तो इस तरह का तर्जुमा तो सभी ने किया लेकिन आला हजरत ने जो मुहावरी तर्जुमा किया है वो ऐसा कमाल का किया है जिसमे लफ्ज़ी तर्जुमा भी आ जाता है पुरी इबारत का वाक्य भी समझ आ जाता है और फलसफा भी समझ आ जाता दुसरो के तर्जुमे को समझने के लिये बङी तफसिर दरकार होती है लेकिन आला हजरत के तर्जुमे का आलम ये है कि खालिस तर्जुमे से ही रब्त हुस्न ब्यान हुक्म फलसफा जो़क अदब सबकुछ मिल जाता है आईये आपको एक आयत का खुबसुरत मन्ज़र बताऊ आयत ये है 👇👇 وَ اِذَا خَلَوۡا عَضُّوۡا عَلَیۡکُمُ الۡاَنَامِلَ مِ...
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