ऊची कब्रों का हुक्म

यही वो कब्रे थी जिन्हे तौङने के लिये अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम ने हजरत अली को भेजा था 

दर असल मुशरिकिन कि कब्रे इसी तरह कि पक्कि हुवा करती थी और उस पर तस्विर भी हुवा करती थी और उन तस्विरो कि पुजा कि जाती थी 

एक खातुन थी अपने शौहर के गम मे उनकी कब्र पर पुरे एक साल तक खेमा लगाकर वो बैठी रही 

तब हुजुर अलैहीस्सलाम ने फरमाया था कि कब्र को चुना ना लगाओ ,कब्र पर ना बैठो ,कब्र पर ईमारत ना बनाओ 

क्योकि अरब कलचर मे ईसाई यहुदीयो कि बनाई गयी कब्र का कलचर राईज़ हो गया था वो इसाई यहुदी कि कब्रो कि तरह बङी बङी ऊंची कुब्बे ईमारतो कि तरह बनाने लग गये थे 
तो इस कलचर को खत्म करने के लिये हजरत अली को भेजा गया था कब्रो को तोङने के लिये ,,
हालांकि वो मुस्लमानो कि कब्रे नही थी क्योकि इस्लाम के बाद हुजुर अलैहीस्सलाम ने मुस्लमानो को सही कब्र बनाने का रिवाज़ दे दीया था 

हुजुर अलैहीस्सलाम ने फरमाया था कि मेने तुम्हे पहले कब्रो कि जियारत से मना किया था लेकिन अब मै तुम्हे इजाज़त देता हु 
तो पहले मना क्यो किया था ? इसलिये कि पहले वो मुशरिकिन कि उंची उंची शिर्की तस्विर और बुत वाली कब्रे भी थी फिर हजरत अली ने जब वो कब्रे तोङ दी और खालिस मुस्लमानो कि कब्रे बची तो आपने इजाज़त दे दी जियारत कि

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