रोज़े_महशर_मुहिब_व_महबूब* *#की_बाहमी_क़ुर्बत*
*#रोज़े_महशर_मुहिब_व_महबूब*
*#की_बाहमी_क़ुर्बत*
हज़रत अनस رضی اللّٰہ عنہ से रिवायत है एक शख्स हुज़ूर नबी ए करीम ﷺ की खिदमत में आया और उसने अर्ज़ किया:
"या रसूलल्लाह ﷺ ! क़यामत कब आएगी?"
हुज़ूर नबी ए अकरम ﷺ नमाज़ के लिए उठ खड़े हुए नमाज़ से फारिग होकर आप ﷺ ने फ़रमाया:
"क़यामत के मुताल्लिक़ पूछने वाला कहां है?"
उस शख्स ने अर्ज़ किया:
"या रसूलल्लाह ﷺ! मैं हाज़िर हूं-"
आप ﷺ ने फ़रमाया:
"तुमने क़यामत के लिए क्या तैयारी की है?"
उसने अर्ज़ किया:
"या रसूलल्लाह ﷺ! ना तो मैंने बहुत ज़्यादा नमाज़ें पढ़ी हैं और ना ही बेशुमार रोज़े रखे हैं मगर इतनी बात ज़रूर है कि मैं अल्लाह और उसके रसूल ﷺ से मुहब्बत रखता हूं-"
आप ﷺ ने ये सुनकर फ़रमाया:
"(क़यामत के दिन) इंसान उसके साथ होगा जिससे वो मुहब्बत करता है और तेरा हश्र भी उसी के साथ होगा जिसके साथ तुझे मुहब्बत है-"
रावी कहते हैं कि:
"इस्लाम लाने के बाद मुसलमानों को जितनी खुशी इस बात से हुई मैंने उन्हें किसी और बात से इतना खुश होते हुए कभी ना देखा..!!"
( ﺟﺎﻣﻊ ﺍﻟﺘﺮﻣﺬﯼ،2:61 )
( ﻣﺴﻨﺪ ﺍﺣﻤﺪ ﺑِﻦ ﺣﻨﺒﻞ،3:200، 178،168،104 )
( ﺻﺤﯿﺢ ﺍِﺑﻦِ ﺣﺒﺎﻥ،1:182،308-9، ﺭﻗﻢ: 1058 )
( ﺷﺮﺡ ﺍﻟﺴﻨﺘﮧ ﻟﻠﺒﻐﻮﯼ،4:13 960، رقم : 34759 )
इस हदीसे मुबारका से ये बात साबित हो गई कि:
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