बड़ा_बेवक़ूफ
*#बड़ा_बेवक़ूफ*
बादशाह ने ऐलान किया कि मेरी सल्तनत में जो सबसे बड़ा बेवक़ूफ हो उसे पेश करो-
बादशाह भी..... बादशाह होते हैं खैर हुक्म था अमल हुआ..
और बेवक़ूफ के नाम से सैंकड़ों लोग पेश कर दिए गए-
बादशाह ने सबका इम्तिहान लिया और फायनल राउंड में एक शख्स कामयाब बेवक़ूफ क़रार पाया-
बादशाह ने अपने गले से एक क़ीमती हार उतार कर उस बेवक़ूफ के गले में डाल दिया-
वो बेवक़ूफ ऐज़ाज़ पाकर अपने घर लौट गया-
एक अरसे बाद वो बेवक़ूफ बादशाह से मिलने के ख्याल से आया- बादशाह मर्ज़ुल मौत में आखरी वक़्त गुज़ार रहा था-
बादशाह को बताया गया बादशाह ने मुलाक़ात का शर्फ बख्श दिया-
वो बेवक़ूफ हाज़िर हुआ:
"बादशाह सलामत..!आप लेटे हुए क्यूं हैं..??"
बादशाह मुस्कुराया और बोला:
"मैं अब उठ नहीं सकता क्यूंकि मैं एक ऐसे सफर पर जा रहा हूं जहां से वापसी नहीं होगी और वहां जाने के लिए लेटना भी ज़रूरी है..!!"
बेवक़ूफ ने हैरत से पूछा:
"वापस नहीं आना...???? क्या हमेशा वहीं रहना है?"
बादशाह बेबसी से बोला:
"हां........ हमेशा वहीं रहना है..!"
बेवक़ूफ ने कहा:
"तो आपने तो वहां यक़ीनन बहुत बड़ा महल,बड़े बागीचे, बहुत से गुलाम और बहुत सामाने ऐश रवाना कर दिया होगा..!"
बादशाह चीख मार कर रो पड़ा बेवक़ूफ ने हैरत से बादशाह को देखा उसे समझ ना आई कि बादशाह क्यूं रो पड़ा है-
रोते हुए बादशाह की आवाज़ निकली:
"नहीं...... मैंने वहां एक झोपड़ी भी नहीं बनाई..."
बेवक़ूफ ने कहा:
"क्या...... ऐसा कैसे हो सकता है...आप सबसे ज़्यादा समझदार हैं- जब आपको पता है कि हमेशा वहां रहना है ज़रूर इंतज़ाम किया होगा-"
बादशाह के लहजे में बला का दर्द था:
"आह....!!! अफसोस सद अफसोस कि मैंने कोई इंतज़ाम नहीं किया-"
बेवक़ूफ उठा...अपने गले से वो हार उतारा और बादशाह के गले में डाल कर बोला:
"तो फिर हुज़ूर.....इस हार के हक़दार आप मुझसे ज़्यादा हैं...!!!"
इंसान इस आरज़ी दुनियां के ऊंचे मक़ाम पर पहुंचने की हर मुमकिन जद्दो जहद से गुरेज़ नहीं करता जो हर एक के लिए लोहे के चने चबाने के बराबर है मगर दायमी ज़िंदगी का आला मक़ाम जो बड़ी आसानी से ना सही मगर कोशिश से हर कोई पा सकता है- उसकी हमे कोई परवाह ही नहीं..!!
तल्ख हक़ीक़त:
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