शिर्क व कुफ़्र का बयान।

❝ 🌹शिर्क व कुफ़्र का बयान।🌹 !?  ❞*  
सवाल:👇
शिर्क किसे कहते हैं ?

जवाब:👇
खुदा ए तआला की ज़ात व सिफ़ात में किसी को शरीक ठहराना शिर्क है। ज़ात में शरीक ठहराने का मतलब यह है, कि दो या दो से ज़ियादा खुदा माने जैसे ईसाई के तीन खुदा मान कर मुशरिक हुए और जैसे हिन्दू के कई खुदा मानने के सबब मुशरिक हैं। और सिफात में शरीक ठहराने का मतलब यह है कि खुदा ए तआला की सिफ़ात की तरह किसी दूसरे के लिए कोई सिफत साबित करे मसलन समीअ (सुनना) और बसीर (देखना) वगैरा जैसा कि खुदा ए तआला के लिए बगैर किसी के दिए जाती तौर पर साबित है इसी तरह किसी दूसरे के लिए समी और बसीर (सुनना और देखना) वगैरा ज़ाती तौर पर माने कि बगैर खुदा के दिए उसे यह सिफ़तें खुद हासिल हैं तो शिर्क है और अगर किसी दूसरे के लिए अताई तौर पर माने कि खुदा ए तआला ने उसे यह सिफ़तें अता की हैं। तो शिर्क नहीं जैसा कि अल्लाह तआला ने खुद इन्सान के बारे में पारा 29 रुकू 19 में फरमाया जिसका तर्जमा यह है कि👇

हमने इन्सान को समी और बसीर (सुनने वाला, देखने  वाला) बनाया.!

सवाल:👇
कुफ़्र किसे कहते हैं ?

जवाब:👇
ज़रूरियाते दीन में से किसी एक बात का इन्कार करना कुफ्र है, जुरूरियाते दीन बहुत हैं उनमें से कुछ यह है👇

खुदा ए तआला को एक और वाजिबुल वुजूद मानना उसकी ज़ात व सिफ़ात में किसी को शरीक न समझना जुल्म और झूट वगैरा तमाम उयूब' (ऐब) से उसको पाक मानना, उसके मलाइका और उसकी तमाम किताबों को मानना, कुरान मजीद की हर आयत को हक समझना, हुजूर' सैय्यिदे आलम (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) और तमाम अंबिया ए किराम की नुबूवत को तस्लीम करना उन सबको अज़मत वाला जानना, उन्हें जलील और छोटा न समझना उनकी हर बात जो कतई और यकीनी तौर पर साबित हो उसे हक मानना हुजूर (सल्लल्लाहू तआ़ला अलैहि वसल्लम) को खातमुन्नबीय्यीन मानना उनके बाद किसी नबी के पैदा होने को जाइज़ न समझना, कियामत हिसाब व किताब और जन्नत व दोज़ख को हक मानना, नमाज़ व रोज़ा और हज व ज़कात की फ़रज़ीयत को तस्लीम करना, जिना, चोरी और शराब नोशी वगैरा हराम ए कतई की हुरमत का इतिक़ाद करना और काफ़िर को काफ़िर जानना वगैरा ।

सवाल:👇
किसी से शिर्क या कुफ़्र हो जाए तो क्या करे ?

जवाब:👇
तौबा और तजदीदे ईमान करे बीवी वाला हो तो तजदीदे निकाह करे और मुरीद हो तो तजदीदे बैअत भी करे।

सवाल:👇
शिर्क और कुफ्र के अलावा कोई दूसरा गुनाह हो जाए तो मुआफ़ी की क्या सूरत है ?

जवाब-👇
तौबा करे खुदा ए तआला की बारगाह में रोये गिड़गिड़ाये अपनी गलती पर नादिम व पशेमान हो और दिल में पक्का अहद करे कि अब कभी ऐसी गलती न करूंगा सिर्फ जुबान से तौबा तौबा कह लेना तौबा नहीं है।

सवाल:👇
क्या हर किस्म का गुनाह तौबा से मुआफ़ हो सकता ?

जवाब-👇
जो गुनाह किसी बन्दा की हकतल्फी से हो मसलन किसी का माल ग़सब कर लिया, किसी पर तोहमत लगाई या जुल्म किया तो इन गुनाहों की मुआफ़ी के लिए ज़रूरी है कि पहले उस बन्दे का हक वापस किया जाए या उससे मुआफ़ी मांगी जाए फिर खुदा ए तआला से तौबा करे तो मुआफ़ हो सकता है। और जिस गुनाह का तअल्लुक़ किसी बन्दा की हक़तलफ़ी से नहीं है बल्कि सिर्फ खुदा ए तआला से है उसकी दो किस्में हैं एक वह जो सिर्फ तौबा से मुआफ़ हो सकता है जैसे शराब नोशी का गुनाह और दूसरे वह जो सिर्फ तौबा से मुआफ़ नहीं हो सकता है जैसे नमाजों के न पढ़ने का गुनाह इसके लिए ज़रूरी है कि वक़्त पर नमाज़ों के अदा न करने का जो गुनाह हुआ उससे तौबा करे और नमाजों की कज़ा पढ़े अगर आखिरी उम्र में कुछ कज़ा रह जाए तो उनके फ़िदयह की वसीयत कर जाए।

📗अनवारे शरीअत सफ़ह 15---16---17) लेखक ख़लीफ़ा ए हुज़ूर सदरुश्शरीअह मुसन्निफे बहारे शरीअत अमजद अली आज़मी,
हज़रत फ़क़ीहे मिल्लत मुफ़्ती जलालुद्दीन अहमद अमजदी रज़ीअल्लाहू तआला अन्हुमा,।

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