(हजरत ईमाम बुखारी रहमतुल्लाह अलैह का बाब )

(हजरत ईमाम बुखारी रहमतुल्लाह अलैह का बाब ) 

हजरत ईमाम बुखारी ने जब बुखारी शरीफ लिखी और जब उस किताब मे किताबु अदब किताब लिखी और उसमे मखलुक के साथ नेकि व सिला रहमी यानी मखलुक के साथ नेकि व ताल्लुक जोङने के अबवाब यानी चेप्टर कायम किये तो उसका नाम रखा किताबु अदब 
और उस किताब मे आप सबसे पहले कुरान कि एक आयत लाए ये वाली 👇👇
وَوَصَّيْنَا الْإِنسَانَ بِوَالِدَيْهِ حُسْنًا ۖ 
यानी - और हमने आदमी को ताकिद कि माँ बाप के साथ एहसान कि ( सुराह अनकबुत आयत 8 का जुज़ ) 
तो ये आयत लाए सबसे पहले पता है क्यो ? 
क्योकि इसमे हुस्ना लफ्ज़ आया है 
क्योकि किसी के साथ ताल्लुक कायम करने और नेकी करने और माँ बाप भाई बहन दोस्त एहबाब मुस्लमान पङोसी और दिगर रिश्ते नातो के हुकुक अदा करने और उनके साथ नेकी व भलाई करने और उनसे ताल्लुक बनाए रखने के अमल मे हुस्न का होना ज़रुरी है अदब का होना ज़रुरी है 
बस अमल मायने नही रखता बल्कि अमल करे तो हुस्न के साथ करे ,
जैसे कुछ लोग एक दुसरे को इस तरह सलाम करते है जैसे सलाम नही बल्कि लठ मार रहे हो मुह सिकुङ कर चिल्ला कर माथे पर बल लाकर तो ये अमल तो लेकिन बेहुस्न अमल है 
सलाम करो तो हुस्न के साथ करो यानी चेहरे पर मुस्कुराहट हो आजिज़ी हो खुश अख्लाकी हो मिठी अवाज़ हो फिर इस हुस्न व अदब के साथ सलाम का अमल करो तो इस तरह दिगर अमल है कुल मिलाकर क्वालिटी हो अमल हो

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