हुजुर सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम के बिना तो कुछ भी नही
(हुजुर सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम के बिना तो कुछ भी नही )
आप कुरान ए मुकद्दस को पढे और देखे कि जहा जहा अल्लाह ने लोगो को अपनी इताअत का हुक्म दिया वही साथ साथ अपने मेहबुब सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम कि इताअत का भी हुक्म दिया जैसे कि ये 👇👇
یٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡۤا اَطِیۡعُوا اللّٰہَ وَ اَطِیۡعُوا الرَّسُوۡلَ وَ لَا تُبۡطِلُوۡۤا اَعۡمَالَکُمۡ
यानी - ऐ ईमान वालो अल्लाह कि इताअत करो और रसूल कि इताअत करो और अपने आमाल बातिल ना करो ( सुराह मुहम्मद आयत 33)
तो आप पुरा कुरान पढ लिजिये आपको हर जगह अल्लाह कि इताअत के साथ रसूल्ल्लाहा कि इताअत का ज़िक्र ज़रुर मिलेगा कही कोई एक आयत ऐसी नही जहा खालिस अल्लाह ने ये हुक्म दिया हो कि मेरी इताअत करो
बल्कि इसके बर अक्स आपको बिस आयते करीमा ऐसी मिल जाएगी जहा खालिस नबी ए करीम कि ही इताअत का ज़िक्र है जैसे कि ये 👇👇
وَ اَقِیۡمُوا الصَّلٰوۃَ وَ اٰتُوا الزَّکٰوۃَ وَ اَطِیۡعُوا الرَّسُوۡلَ لَعَلَّکُمۡ تُرۡحَمُوۡنَ
यानी - और नमाज़ कायम करो और ज़कात अदा करो और रसूल कि इताअत करो इस उम्मिद पर कि तुम पर रहम हो ( सुराह नुर आयत 56)
तो देखा आपने यहा खालिस नबी ए करीम कि इताअत का ज़िक्र है
कही कोई ऐसी आयत नही जहा खालिस अल्लाह कि इताअत का ज़िक्र हो
इसलिये कि सुनो नबी ए करीम कि ज़ाते बाबरकत वो ज़ात है जिसे अल्लाह तक पहुचने का वसिला बनाया है अल्लाह ने ,
नबी ए करीम के बिना तो अल्लाह कि मारेफत भी हासिल नही होती और ना अल्लाह कि इताअत का शर्फ हासिल हो सकता है
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