क़ुरआन_की_अज़मत (मंदिर और मज्जिद)
*#क़ुरआन_की_अज़मत*
हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ देहलवी رحمتہ اللہ علیہ के ज़माने में एक हिंदू पंडित ने एक ऐलान किया कि:
"हिंदू मज़हब सच्चा मज़हब है और इस्लाम झूठा मज़हब है-"
और दलील उसने ये पेश की कि:
"हमारा फलां मंदिर जो दो हज़ार साल से बना हुआ है आज तक बिल्कुल सही सालिम है उसकी दीवारें खिड़कियां दरवाज़े गरज़ सब कुछ वैसा का वैसा आज तक अपनी असली हालत में मौजूद है जबकि मुसलमानों की मस्जिद एक साल भी नहीं गुज़रता कि रंग रौगन दरो दीवार दरवाज़े खिड़कियां सब कुछ खराब होना शुरू हो जाते हैं- लिहाज़ा ये इस बात की दलील है कि इस्लाम मिटने वाला है और हिन्दू मज़हब बाक़ी रहने वाला है-"
मुसलमानों की अक्सरियत इस प्रोपगंडा का जवाब देने में नाकाम रही और इसकी वजह से लोग बहुत शशो पंज में मुब्तिला हो गए कि :
"इस प्रोपगंडा का रोक थाम कैसे किया जाए-"
ऐसे में हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ देहलवी आगे आए और उन्होंने ऐलान किया कि:
"इसका जवाब मैं दूंगा-"
पंडित ने कहा:
"क्या जवाब है-"
हज़रत ने कहा कि:
"ऐसे नहीं उसी मंदिर के दरवाज़े पर जवाब दूंगा-"
मुक़र्ररा वक़्त पर मुसलमान और हिन्दू सब जमा हो गए कि:
"देखें क्या जवाब देते हैं-"
हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ देहलवी मंदिर के दरवाज़े पर खड़े हो गए और क़ुरआन की सूरह हश्र की आयत पढ़ने लगे जिसका तर्जुमा है.....
"अगर अल्लाह तआला इस क़ुरआन को पहाड़ पर भी नाज़िल कर देता तो वो पहाड़ भी अल्लाह तआला के जलाल से डर कर टुकड़े टुकड़े हो जाता-"
(सूरह हश्र आयत नंबर 21)
आप आयत पढ़ते जाते और मंदिर के दरो दीवार दरवाज़ों की तरफ उंगली से इशारा करते जाते ऐसे में अल्लाह तआला ने आपके हाथ पर अपने दीन की हक़्क़ानियत की करामत ज़ाहिर कर दी और मंदिर की दीवारें गिरना शुरू हो गई दरवाज़े टूटने लगे मुसलमानों ने अल्लाहु अकबर का नारा लगाया पंडित जल्दी से हज़रत के क़दमों में गिर गए और कहा:
"बस करें बहुत हो गया लेकिन इसकी हक़ीक़त तो बता दें कि ये क्या हुआ-"
आपने फरमाया:
"अल्लाह तआला क़ुरआन में फरमाता है कि क़ुरआन अगर पहाड़ पर नाज़िल कर देता तो वो भी अपनी जगह नहीं ठहर सकता फिर इस मंदिर की क्या मजाल है कि ये अपनी जगह पर खड़ा रहता....ये तो मस्जिद की अज़मत है कि उसमें रोज़ाना क़ुरआन पढ़ा जाता है फिर भी अपनी जगह पर खड़ी रहती है..!!"
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