_टिड्डी
#______टिड्डी______अल्लाह______का______लश्कर
#__टिड्डी - इसे अरबी में अलजराद और इंग्लिश में लोकस्ट कहते हैं,इसकी 2 किस्म होती है एक तो दरियाई और दूसरी सहरायी,अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुर्आन में इरशाद फरमाता है कि
#कंज़ुल__ईमान - नीची आंखें किये हुए क़ब्रो से निकलेंगे गोया वो टिड्डी हैं फैली हुई (यानि क़यामत के दिन जब इंसान अपनी अपनी क़ब्रो से बाहर आयेंगे और ज़मीन पर फैलेंगे तो यूं लगेगा जैसे कि टिड्डियों का लश्कर हो)
(पारा 27,सूरह क़मर,आयत 7)
#__टिड्डी - टिड्डी अल्लाह का लश्कर हैं और इनके सीनों पर ये इबारत लिखी हुई है #नहनू__जुंदल्लाहिल__आज़म यानि हम अल्लाह का अज़ीम लशकर हैं,एक मर्तबा एक टिड्डी हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसललम की बारगाह में हाज़िर हुई और कहती है कि हम 99 अंडा देते हैं अगर 100 हो जायें तो पूरी दुनिया को खा जायें,हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसललम अपने सहाबा से फ़रमाते हैं कि ये अल्लाह का लश्कर हैं लिहाज़ा इन्हें क़त्ल न करो,मतलब ये कि इन्हें युंही न मारो हां अगर नुक्सान पहुंचायें तो मार सकते हैं
#__टिड्डी - मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसललम इरशाद फरमाते हैं कि अल्लाह जब किसी कौम को आज़माईश में मुब्तिला करना चाहता है तो टिड्डियों को भेज देता है,एक मर्तबा हज़रते उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के ज़माने में टिड्डियां गायब हो गयीं तो आप ग़मगीन हो गए और उनकी तलाश शुरू कर दी,बिल आखिर उन्हें कहीं से ढूंढ लाया गया तो आप को सुकून मिला,लोगों ने जब माजरा पूछा तो फरमाया कि अल्लाह ने 1000 मख्लूक़ को पैदा फरमाया है जिनमे से 600 दरिया में 400 खुशकी में आबाद हैं मगर जब भी अल्लाह किसी मख्लूक़ को फना करना चाहेगा तो पहले टिड्डियों को फना करेगा फिर बाक़ी मख्लूक़ को इसीलिये उनके न मिलने पर मैं ग़मगीन हुआ कि कहीं उनपर फना का हुक्म तो नहीं आ गया
#__टिड्डी - जब ये अंडे देने का इरादा करती है तो सख्त और बंजर ज़मीन तलाश करती है कि जहां इंसान का गुज़र न हो फिर ज़मीन में सुराख करके अंडे दे देती है,और अंडे वही पड़े पड़े ज़मीन की गर्मी से ही बच्चे निकाल देती है,बच्चों को अरबी में अलदबी और जब कुछ बड़ी हो जाए और पर निकल आयें तो उन्हें गोगात और जब अपने उरूज पर आ जायें यानि नर ज़र्द रंग का और मादा काले रंग की हो जाए तो उन्हें अलजराद कहते हैं
#__टिड्डी - इसकी 6 टांगें होती है 2 आगे 2 बीच में और 2 पीछे की तरफ,इसके आज़ा में 10 जानवरों की शक्ल पाई जाती है इसका चेहरा घोड़े का आँख हाथी की गर्दन बैल की बारह सिंघा के सींग शेर का सीना बिच्छु का पेट गिद्ध के पर ऊँट की रान शुतुरमुर्ग की टाँग और सांप की दुम,ये हमेशा लश्कर की तरह परवाज़ करते हैं इनके आगे इनका सरदार होता है अगर वो उड़ता रहता है तो सब उड़ते हैं अगर वो बैठ जाता है तो सब उतर जाते हैं,इनका लोआब हरियाली के लिए ज़हर है,अगर इनका झुण्ड किसी खेत या खलिहान में उतर गया तो समझो वो पूरा बर्बाद हो गया
#__टिड्डी - #__ये__पाक__है__और__हलाल__भी
#__टिड्डी - इसके फवायद में से है कि अगर किसी को रूक रूककर पेशाब आता हो तो टिड्डी को मारकर उसकी धूनी देने से ये मर्ज़ ठीक हो जायेगा,इसी तरह अगर किसी को इस्तस्का का मर्ज़ हो तो टिड्डी का सर और पांव लेकर उसमे दरख़्त रेहान की छाल मिलाकर पीने से इस मर्ज़ से छुटकारा मिल जायेगा,चौथिया बुखार में अगर लंबी गर्दन वाले टिडडे को तावीज़ की शक्ल में पहना जाए तो चौथे दिन बुखार उतर जायेगा,इसी तरह अगर किसी के चेहरे पर छाईयां हो तो टिड्डे के अंडों को चेहरे पर मले तो ये मर्ज़ जाता रहेगा
#__टिड्डी - इसको ख्वाब में देखने की ताबीर ये है कि अगर छोटी टिड्डी को देखा तो किसी शर पसंद इंसान से मुलाक़ात होगी,अगर किसी ने देखा कि टिड्डियों की बारिश हो रही है तो इसके किसी नुक्सान का फायदा हासिल होगा,अगर ये देखा कि टिड्डियों को पकड़ कर किसी मटके में महफूज़ करता है तो उसे दौलत मिलेगी
(हयातुल हैवान,जिल्द 1,सफह 477-485)
#__टिड्डी - इससे बचाव के लिए कुछ दुआ बताई गयी है उस दुआ के लिए आपको मेरी वेबसाइट पर जाना होगा,लिंक नीचे है उसपर क्लिक करें 👇
http://zebnews.in/wp-content/uploads/2020/05/DUA-FOR-TIDDI.jpeg
टिड्डी अल्लाह का लश्कर है तो ज़रूर ज़रूर किसी हिकमत के तहत ही ज़ाहिर हुआ है और वो हिकमत यही है कि जब जब अल्लाह के नेक बन्दों यानि मुसलमानों पर नाजायज़ो जुल्मों सितम होंगे तो अल्लाह उनकी मदद के लिए अपनी फौज भेज देगा,कमज़ोर हम है हमारा रब नहीं मजबूर हम हैं हमारा रब नहीं ये तो हमारे आमाल खराब हैं वरना फैसला तो मिनटों में हो जाता कि इधर हाथ दुआ के लिए उठता उधर फैसला हो जाता,पर अफसोस सद अफसोस कि हमने अपनी क़ाबिलियत खो दी और हम भूल गए कि हम मुसलमान हैं वही मुसलमान जो 313 होकर भी हज़ारों काफिरों से भिड़ गए थे जो 72 होकर भी 10000 के लश्कर से लोहा ले रहे थे,हमारे नारों से बड़े से बड़ा किला भी थरथरा कर गिर जाता था और जिस तरफ रुख कर देते थे सहरा दरिया जंगल पहाड़ सब सब हमारे क़दमों में गिरा नज़र आता था,इंसान की तो क्या बात तमाम मख्लूक़ मुसलमानों की अज़मतो शान पर दाद व तहसीन देती थी,मौला तआला से दुआ है कि अपने हबीब के सदक़े में मुसलमानों को फिर वही सर बुलंदी अता फरमाए जिसके वो हक़दार हैं आमीन बिजाहिस सय्यदिल मुर्सलीन सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम
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