*सवाल (Sawal)*कूण्डे की फ़ातिहा के बारे में बताएं
📄 *सवाल (Sawal)*
कूण्डे की फ़ातिहा के बारे में बताएं
📄 *जवाब (Jawab)*
*अब कूण्डे की फ़ातिहा और उस पर होने वाली गलतफहमीयों को जानते हैं*
▪️देखें कूण्डे की फ़ातिहा हज़रते इमामे जाफ़र सादिक़ رضي الله عنه के नाम से दिलाई जाती है, जिनके विसाल या शहादत की तारीख़ रज्जबुल मुरज्जब (रजब) की 15 तारीख़ को है इसलिए हमें रजब की 15 तारीख़ को फ़ातिहा या नियाज़ दिलाना चाहिए लेकिन अगर कोई रजब की 22 तारीख को फ़ातिहा दिलाता है तो भी हर्ज नहीं क्यूंकि फ़ातिहा के लिए कोई दिन तय नहीं, जब मयस्सर हो तब नियाज़ करवा सकते हैं, लेकिन 15 तारीख़ को कराना बेहतर है,
▪️नियाज़ या फ़ातिहा का मतलब होता है कि हमने जो भी नेक अमल, इंतेज़ाम, तिलावत, विर्द व वाज़ाएफ, किसी तबर्रुक का इंतेज़ाम किया उसे किसी बुजुर्ग, वली अल्लाह, मरहूम को भेजना, इसका मतलब ये नही होता कि हमने जो खाना या पकवान पकाया है उसे उन बुजुर्ग या मरहूम को खिला रहे हैं बल्कि इसको जब हम लोगों को या किसी गरीब को खिलाएंगे तो जो सवाब उससे मिलेगा उस सवाब को उनके नाम पर बख़्श रहे हैं,
▪️कोई भी नियाज़ अदब की चीज़ होती है लिहाज़ा उसके अदब के लिए कोई अच्छी सोच या काम किया जाए तो अच्छी बात है, लेकिन कुछ बातें तो ग़ैर ज़रूरी है और अवाम ने उसे खुद पर लाज़िम कर लिए है तो ये गलत है,
▪️बहुत से लोग कहते या सोचते हैं कि इस कूण्डे की फ़ातिहा को एक बार करवाते हैं तो हर साल करना होगा वरना बुरा होगा वगैरह वगैरह, और हर साल एक - एक किलो बढ़ाना होगा, जबकि ये दोनों खयाल गलत हैं, इस्लाम मे मुस्तहब चीजों पर ऐसा कोई लाज़िम नही रखा है, बल्कि जिसकी जब और जितनी हैसियत हो करवाये और जब हैसियत ना हो तो न करवाये, लेकिन नियाज़ के लिए सूद पर क़र्ज़ लेना वगैरह जाएज़ नही और ना ही क़र्ज़ ले कर इंतेज़ाम करने की ज़रूरत है, हां अगर हैसियत है तो रब के शुक्र में और बरकत व फ़ैज़ हासिल करने के लिए करवाना चाहिए,
▪️बहुत से लोग कूण्डे की नियाज़ पर मन्नत मानते हैं की आगे और भी करेंगे वगैरह और सोचते हैं कि अगर हमने ये मन्नत पूरी ना कि तो बुरा होगा या नुकसान होगा, लेकिन नज़र व नियाज़ की मन्नत उर्फी मन्नत होती है जो कि अगर हैसियत नही है तो न करने से कोई नुकसान नहीं, क्यूंकि ये मन्नत वाजिब नही होती, हां अगर हैसियत है तो पूरी करना चाहे तो करले अच्छी बात है,
▪️इसी के साथ एक गलतफहमी ये भी है कि कूण्डे के फ़ातिहा के लिए मिट्टी का बर्तन होना लाजमी है, जो कि पूरी तरह गलत है, आपके पास जो बर्तन हो उसका इस्तेमाल कर सकते हैं
▪️जो मिट्टी के बर्तन लाये जाते हैं तो उसे पाक करने के नाम से ना जाने क्या क्या नए नए काम करते हैं जिनकी कोई असल नही और ना ही ऐसा कोई अमल है, इसलिए अगर कोई मिट्टी के बर्तन लाया है तो सादे पानी से धो लेंगे तो भी पाक हो जाएगा कोई नया काम करने की ज़रूरत नही,
▪️लोगों में ये मशहूर है कि कूण्डे की शीरनी को बाहर नही ले जा सकते या बच्चों के हाथ मे नही दे सकते, जहाँ पर फ़ातिहा हुई है वही पर बैठ कर खाना ज़रूरी है, तो ये भी गलत खयाली है, ये भी और नियाज़ की तरह ही है लिहाज़ा अगर कही और ले जाना चाहें या बांटना चाहें तो ये सभी सूरतें बिल्कुल जाएज़ हैं, हां किसी भी तबर्रुक का एहतिराम करना ज़रूरी है इस लिए गिराना वगैरह नही चाहिए,
▪️एक गलतफहमी ये भी है कि कुण्डे की नियाज़ को सिर्फ औरतें ही खिला सकती हैं तो ऐसा कोई लाज़मी नही है जो चाहे वो खिला सकता है,
▪️कोई ख़्वातीन अगर हैज़ (पीरियड्स) के दौरान अगर कुण्डे की शीरनी बनाती है तो ये भी बिल्कुल जाएज़ है वो बना सकती है और उस तबर्रुक को वो खा भी सकती है दोनों जाएज़ है इसमे कोई हर्ज नहीं,
▪️जो ख़्वातीन शीरनी तक़सीम करेगी या खिलाएगी उसका ग़ुस्ल करके बैठना लाज़िम है ऐसा भी ज़रूरी नहीं, जो पाक साफ हो तो उसे अलग से ग़ुस्ल करना ज़रूरी नहीं हां अगर कोई करना चाहे तो कर सकता है इसमे कोई हर्ज नहीं बस लाज़िम न समझें,
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