मसाइले क़ुर्बानी





                    *मसाइले क़ुर्बानी*
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*काना,लंगड़ा,लागर,बीमार,जिसकी नाक या थन कटा हो,जिसका कान या दुम तिहाई से ज्यादा कटी हो,बकरी का 1 थन या भैंस का 2 थन खुश्क हो ऐसे जानवरों की क़ुर्बानी नहीं हो सकती*

*📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 139*

*_क़ुर्बानी के जानवर को ऐब से खाली होना चाहिए अगर ज़्यादा ऐबदार है तो क़ुर्बानी नहीं होगी और अगर थोड़ा भी ऐब होगा तो क़ुर्बानी तो हो जाएगी मगर मकरूह है,जानवर की पैदाईशी सींग नहीं है तो क़ुर्बानी हो जायेगी मगर सींग थी और जड़ से टूट गयी क़ुर्बानी नहीं हो सकती अगर थोड़ी सी टूटी है तो हो जाएगी,भैंगे की क़ुर्बानी हो जायेगी मगर अंधे की नहीं युंही जिसका काना पन ज़ाहिर हो उसकी भी क़ुर्बानी जायज़ नहीं,बीमार इतना है कि खड़ा होता है तो गिर जाता है या इतना लागर है कि चल भी नहीं सकता क़ुर्बानी नहीं हो सकती,जानवर का कोई भी अज़ू अगर तिहाई से ज़्यादा कटा है तो क़ुर्बानी नहीं हो सकती,जिसके पैदाईशी कान ना हो या एक ही कान हो क़ुर्बानी नहीं हो सकती,जिसके दांत ही ना हो या जिसके थन कटे हों या एक दम सूख गए हों क़ुर्बानी नहीं हो सकती,जिसकी नाक कटी हो या जिसमें नर व मादा दोनों की अलामत हो क़ुर्बानी नहीं हो सकती_*

*मय्यत की तरफ से क़ुर्बानी की तो गोश्त का जो चाहे करे,लेकिन किसी ने अपनी तरफ से क़ुर्बानी करने को कहा और मर गया या क़ुर्बानी अगर मन्नत की है तो उसका गोश्त ना खुद खा सकता है ना ग़नी को दे सकता है बल्कि पूरा गोश्त सदक़ा करे*

*📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 144*

*_यानि किसी ने वसीयत की कि मेरी तरफ से क़ुर्बानी करना और वो मर गया या किसी ने अपनी मन्नत की क़ुर्बानी की तो उसमे से एक बोटी भी नहीं खा सकता बल्कि पूरा गोश्त सदक़ा करे अगर खा लेगा तो जितना खाया है उतने का माल सदक़ा करे और अगर खुद किसी मय्यत के नाम से ईसाले सवाब की गर्ज़ से क़ुर्बानी की तो गोश्त खा सकता है_*

*क़ुर्बानी का गोश्त काफिर को हरगिज़ ना दें और बदमज़हब मुनाफिक़ तो काफिर से बदतर हैं लिहाज़ा उसको भी हरगिज़ ना दें*

*📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 144*

 *_जितने भी बद मज़हब फिरके हैं उन सबको क़ुर्बानी का गोश्त नहीं दे सकते अगर देंगे तो गुनहगार होंगे_*

*जो जानवर को ज़बह करे बिस्मिल्लाह शरीफ वोह पढ़े किसी दूसरे के पढ़ने से जानवर हलाल ना होगा*

*📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 121*

*_बेहतर है कि जिसके नाम से क़ुर्बानी हो रही है वो बिस्मिल्लाह अल्लाहु अकबर कहकर छुरी चलाये वरना जो भी ज़बह करे वो पढ़े_*

*ज़बह के वक़्त जानबूझकर बिस्मिल्लाह शरीफ ना पढ़ी तो जानवर हराम है,और अगर पढ़ना भूल गया तो हलाल है*

*📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 119*
*📕 ज़बीहे इसाले सवाब,सफह 15*

*_सुन्नी साहियुल अक़ीदा मुसलमान जान बूझकर ऐसा कर ही नहीं सकता हां निस्यानन यानि भूल से ही ऐसा हो सकता है लिहाज़ा सुन्नी का ज़बीहा हलाल है लेकिन अगर किसी सुन्नी ने जानबूझकर बिस्मिल्लाह नहीं पढ़ा या किसी बद मज़हब ने ज़बह कर दिया तो जानवर हराम होगा अगर चे बद मज़हब बिस्मिल्लाह पढ़कर ज़बह करे क्योंकि वो काफिरो मुर्तद है और किसी भी बद अक़ीदे का ज़बीहा हराम हराम हराम है मिस्ल सुअर है_*

*ज़बह करते वक़्त जानवर की गर्दन अलग हो गई या जानबूझकर भी अलग कर दी तो ऐसा करना मकरूह है मगर जानवर हलाल है*

*📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15, सफह 118*

*_बकरे वगैरह में तो ऐसा कम ही होता है जबकि आम दिनों में मुर्गे को ज़बह करने में ऐसा हो सकता है कि सर पूरा अलग हो जाए बहरहाल गर्दन किसी की भी कट जाए जानवर हलाल ही रहेगा_*
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*🌹والله تعالیٰ اعلم بالصواب🌹*

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