सोज़े_रूमी
*#सोज़े_रूमी*
रिवायत है कि एक क़स्बे में एक मज्ज़ूब था जो हमेशा अपने आप में मस्त रहता था- एक दिन वो मस्जिद में नमाज़ पढ़ने के लिए पेश नमाज़ के ऐन पीछे नियत बांध कर खड़ा हो गया- इमाम जब सूरह इख्लास पढ़ना शुरू हुआ तो मज्ज़ूब की आंखों से आंसू बह कर उसके गरीबां तर करने लगे और उसने एक चीख मार कर अपना गरीबां फाड़ दिया और ज़ोर ज़ोर से रोने लगा- नमाज़ मुकम्मल होने पर उसके पहलू में बैठे शख्स ने पूछा कि:
"तुम गरीबां फाड़ कर रोने क्यूं लग पड़े थे? सूरह इख्लास में तो अल्लाह की वहदानियत का बयान है- उसके मज़ाहिर और औसाफ बयान किए गए हैं- ना इस सूरह में जन्नत जहन्नम की मंज़रकशी की गई है ना किसी अज़ाब का बयान है- ना यहां हज़रत याक़ूब की नाबीनाई का कोई ज़िक्र है ना हज़रत अय्यूब की बीमारी का-
گفت آن شوریدہؑ درد آشنا
गुफ्त आं शोरीदह दर्द आसना
"گریه ام آیَد به احوالِ خدا
गिरियह अम्म आयद बिह अहवाले खुदा
वो दर्दमंद व शोरीद सर यूं गोया हुआ...
"मुझे उस (अल्लाह) के हाल पर रोना आता है..."
نی پدر دارَد، نی مادر، نی پسر
नी पिदर दारद नी मादर नी पिसर
نی یکی خویشی کز او گِیرَد خبر
नी यकी खुवैशी कज़ ओ गीरद खबर
"ना तो उसका कोई बाप है,ना मां और ना ही कोई औलाद..हत्ता कि ऐसा कोई अपना भी नहीं जो उसका हाल अहवाल पूछे...."
نی رفیقی تا بروید بِستَرَش
नी रफीक़ी ता बरूयद बिस्तरश
نی ندیمی تا بِکوبَد شب درَش
नी नदीमी बिकुबद शब दरश
"ना कोई दोस्त है जो उसके सिरहाने बैठे....
ना कोई हमदम है जो रात को उसका दरवाज़ा खटखटाए.."
سوختم از قصّهؑ بی خانَگِیش
सोख्तम अज़ क़िस्सा भी खानगीश
از ھمه خلقِ جہان بیگانگِیش
अज़ हम्मह खल्क़े जहां बेगानगीश
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