नमाज़ ए जनाज़ा

नमाज़ ए जनाज़ा दर असल नमाज़ नही है बल्कि मय्यत के लिये इस्तिगफार है और रब कि बारगाह मे शफाअत मांगने का ज़रीया 

चुंकि सलात ( नमाज़ )  का एक माना दुआ होता है इसलिये बतोरे लुगत इसे नमाज़ ए जनाज़ा कहा जाता है 

इस नमाज़ मे कुरान ए मजिद कि तिलावत करना मना है बतौरे किरात ,
इसकी दलिल कसिर तादाद मे सहाबा किराम के आसार से है 
कसिर सहाबा ने फरमाया है कि नमाज़े जनाज़ा कि पहली तकबिर के बाद सना करो रब कि फिर अपने नबी पर दरुदे पाक भेजो फिर उस मय्यत के लिये दुआ करो 

कुछ सहाबा से जो सुराह फातिहा पढने कि जो सबुत मिलते है वो बतोरे तिलावत नही पढी गयी बल्कि बतोरे सना ए इलाही पढी गयी 
यही ईमाम अबु हनिफा का मज़हब है कि जनाज़े मे कुरान कि तिलावत ना कि जाए 
हाँ बतोरे सना या बतोरे दुआ कुछ कलेमात पढ लिये वो भी निय्यत ए सना व दुआ के तो हर्ज नही ।

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