तहज्जुद

*#तहज्जुद*

क्या आप फ़र्ज़ नमाज़ और तहज्जुद की नमाज़ के दरमियान फर्क़ जानते हैं ?

मैने एक बेहतरीन मज़मून पढ़ा ऐसी बात कि जिससे रोंगटे खड़े हो जाते हैं...

मुझे रात के आखरी पहर में नमाज़ की तौफीक़ हुई तो मैंने एक अजीब बात महसूस की:
          "कि फर्ज़ नमाज़ की निदा बंदे की आवाज़ में आती है, और रात के आखरी पहर की नमाज़ "तहज्जुद" की निदा बंदों को रब की जानिब से आती है- 

फर्ज़ नमाज़ की निदा हर कोई सुनता है, और तहज्जुद की नमाज़ की निदा बाज़ लोग ही महसूस करते है, फर्ज़ नमाज़ की निदा "हय्या अ लस-सलाह, हय्या अलल फलाह" आओ नमाज़ की तरफ, आओ कामयाबी की तरफ है, और तहज्जुद की नमाज़ की निदा (هل من سائل فأعطيه) है........ है कोई मांगने वाला जिसे मैं अता करूँ!

फ़र्ज़ नमाज़ मुसलमानों की अक़्सरियत अदा करती है, जबकि तहज्जुद की नमाज़ वही लोग अदा करते है जिन को अल्लाह ने चुन लिया है, और मुन्तख़ब कर लिया है-

फ़र्ज़ नमाज़ बाज़ लोग रिआकारी और दिख्लावे के लिए भी पढ़ते हैं, जहां तक ताल्लुक़ है तहज्जुद की नमाज़ का तो उसे हर कोई तन्हाई में खालिस अल्लाह के लिए पढ़ता है।

फ़र्ज़ नमाज़ की अदायगी के दौरान दिनों के मशागिल और शैतानी वसवसे आते रहते है, जबकि तहज्जुद की नमाज़ तो दुनिया से यकसुई और आख़िरत के बनाने ही का नाम है, बहुत सी मर्तबा फ़र्ज़ नमाज़ इसलिए अदा करते है ताकि मस्जिद में किसी से मुलाकात हो जाये, और उससे चंद बातें हो जायें, जबकि तहज्जुद की नमाज़ इसलिए अदा करते है ताकि अल्लाह से बात-चीत करके ताल्लुक़ बनाया जाए, उससे बातें की जाएं, और अपनी तकालीफ़ और सवालात को उसके सामने रक्खा जाए!

फ़र्ज़ नमाज़ की दुआ बाज़ मर्तबा ही क़ुबूल होती है, जब कि तहज्जुद की नमाज़ तो अल्लाह ने अपने बंदों से क़ुबूलियत का वादा फरमाया है, (هل من سائل فأعطيه) आखिर में तहज्जुद की नमाज़ की तौफीक़ उसी को होती है जिसके लिए अल्लाह ने उससे बात-चीत करके उन्स पैदा करने और उसकी तकलीफों को और शिकायतों को सुनने का इरादा किया है, इसलिए कि वह अल्लाह के सबसे करीबी बंदों में से है।

लिहाज क़ाबिले मुबारकबाद हैं वह लोग जिन को अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की जानिब से उसके सामने बैठने, उसको बातें सुनाने और उससे मुनाजत करने की लज़्ज़त हासिल करने का दावत नामा मिला है!!

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