सवारीयो और हाजरीयो का आना
(सवारीयो और हाजरीयो का आना )
कोई कहता है मुझे गौसे आज़म कि सवारी आती है
कोई ईमाम हुसैन अलहीस्सलाम कि चौखट बनाकर बैठकर कहता है कि ईमाम हुसैन कि सवारी आ रही है
कोई कहता है कि मुझे फला बुजुर्ग कि हाजरी हुवी ,कोई कहता है कि मुझे वली कि सवारी आई
ये तमाम बाते मनगढत ,बेबुनियादी ,निरी जहालत और गुमराहीयत है
हर बुजुर्ग वली पाक हस्तिया है किसी दुसरे पर हुलुल नही हो सकती है
वो अल्लाह के कुर्ब मे है जन्नते रज़ा से मुशर्रफ है
फिर सवाल बनता है कि ये जो सवारीयो के आने का दावा करते है इनकी आवाज़े क्यो बदल जाती है और वो जो मखफी चिज़े यानी कुछ हमारे बिते हुवे कल कि बाते बताते है ये सब क्या है ?
तो सुनो ये सब दर असल शर फसाद जिन्नो और खबिस जिन्नातो कि करनी होती है
जो लोगो को गुमराह करने के लिये इन्सानो मे हुलुल कर जाते है
लेकिन इस हुलुल मे सारी गलती सिर्फ जिन्नातो कि नही होती है बल्कि ये एक तरह कि अमलिया होती है जिससे आपस मे सहमती बनती है ,
इसलिये जादु वगैराह और इस तरह के अमल का कुफ्र से खाली होना ना मुमकिन है
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