जांनिसारे_मुस्तफा_ﷺ

*#जांनिसारे_मुस्तफा_ﷺ*

फतहे मक्का से पहले मशहूर सहाबी हज़रत ज़ैद رضی اللّٰہ عنہ दुश्मनाने इस्लाम के नरग़े में आ गए- सफवान बिन उमय्या ने उनको क़त्ल करने के लिए अपने गुलाम निस्तास के साथ तनईम भेजा-  हज़रत ज़ैद رضی اللّٰہ تعالٰی عنہ को हुदूदे हरम से बाहर ले जाया गया तो अबू सुफियान ने (जो अभी ईमान ना लाए थे) उनसे पूछा:
          "ज़ैद ! मैं तुमको खुदा की क़सम देकर पूछता हूं क्या तुम पसंद कर सकते हो कि इस वक़्त हमारे पास तुम्हारी जगह मुहम्मद ﷺ हों और हम उनको क़त्ल करें और तुम आराम व सुकून से अपने अहल में रहो-"
हज़रत ज़ैद ने जवाब दिया:
           "अल्लाह की क़सम! मैं तो ये भी पसंद नहीं करता कि इस वक़्त मेरे हुज़ूर ﷺ जहां कहीं भी हों उनको एक कांटा भी चुभे और मैं आरामो सुकून से अपने अहल में रहूं-" 
ये सुनकर अबू सुफियान ने कहा:
            "मैंने ऐसा कहीं नहीं देखा कि किसी से ऐसी मुहब्बत की जाती हो जैसी मुहब्बत मुहम्मद ﷺ से उनके अस्हाब करते हैं-"
इसके बाद हज़रत ज़ैद को शहीद कर दिया गया-
(شرح الشفاء للقاضی عیاض،باب الثانی ، فصل فیما روی عن السلف،ج۲،ص۴۴)

आक़ा करीमﷺ की मुहब्बत ईमान की जड़ है- एक सच्चा मुसलमान हर चीज़ बर्दाश्त कर लेने की हिम्मत रखता है लेकिन जब बात आक़ा علیہ السلام की नामूस की आए तो वहां मुसलमान खामोश नहीं रह पाता- इस्लाम अमन का दाई और एक मुकम्मल दीन और राहे निजात है- किसी दिल में आक़ा علیہ السلام की कदूरत और ईमान का यकजां हो जाना नामुमकिन है- जिस दिल में हुज़ूर ﷺ की कदूरत हो और वो ईमान वाला होने का दावा करे तो वो अपने दावे में यकसर झूठा और कज़्ज़ाब है...!!!

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