बिल्ली_की_बारगाहे_रिसालत_ﷺ* *#में_इल्तिजा*
*#बिल्ली_की_बारगाहे_रिसालत_ﷺ*
*#में_इल्तिजा*
एक दफा कुछ ज़ायरीन मक्का मुकर्रमा से उमरा अदा करने के बाद मदीना मुनव्वरा में हाज़िर हुए- वो जिस होटल में मुक़ीम थे वहां एक खूबसूरत बिल्ली रहती थी जो एक हाजी साहब के दिल को अच्छी लगी- बिल्ली रोज़ाना उनके क़रीब आती और वो उससे प्यार करते- हाजी साहब के मन में मदीने की बिल्ली खूब समा गई थी- और वो उस बिल्ली को रोज़ कुछ ना कुछ लाकर खिलाते थे- बिल्ली उनको बहुत पसंद आ गई और उन्होंने बिल्ली को अपने साथ अपने वतन ले जाने की नियत कर ली थी-
ब तमाम हिफाज़त ले जाने के लिए उन्होंने एक पिंजरे की भी तरकीब बना ली थी- जब हिज्रे मदीना की जां सोज़ घड़ियां क़रीब आईं और मदीने की आखरी रात आ गई तो हाजी साहब ने बारगाहे रिसालत ﷺ में अलविदाई सलाम पेश किया और कमरे पर आकर लेट गए- बस नसीब जाग गए और ख्वाब में आक़ा ए नेमत रिसालत मआब सरकारे कुल कायनात हुज़ूर नबी करीम ﷺ तशरीफ फरमा हुए-
करीम लजपाल ने करम फरमाया लब हाए मुबारका को जुम्बिश हुई रहमत के फूल झड़ने लगे हुज़ूर नबी करीम ﷺ ने फरमाया:
"आप लोग सुबह खैरियत से मदीना तैय्यबा से रुख्सत हो जाओगे मगर मेरी बिल्ली को साथ ना ले जाना-"
ये कई दिन से रोज़ाना मेरे दरबार में हाज़िर होकर अर्ज़ करती है:
"या रसूलल्लाह ﷺ ! मुझे बचा लीजिए मुझसे मदीना छूट रहा है- हुज़ूर आपके मेहमान मुझे अपने साथ अपने वतन ले जाने लगे हैं- मुझे आपके दर से जुदा नहीं होना है-"
तो तुम मेरी बिल्ली को मेरे दर से जुदा ना करो..!!
حوالہ کتاب ۔ مدینتہ الرسول صفحہ ٤۱۹
سبحان اللّہ فِداک رُوحی و قلبی یاسیدی یارسول اللّہ صلی اللّہ علیہ وآلہ واصحابہ وسلم
*#सबब_ए_वफूरे_रहमत_मेरी_बेज़बानियां_हैं*
*#ना_फुग़ां_के_ढंग_जानूं_ना_मुझे_पुकार_आए*
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