क़ुरबानी

#क़ुरबानी

*_हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम जब तक पैदा नहीं हुए थे तो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम औलाद के लिए दुआ किया करते थे जब उनकी दुआ क़ुबूल हुई तो मौला फरमाता है कि "हमने उसे खुशखबरी सुनाई एक बुर्दबार लड़के की" चुंकि मौला ने उन्हें सब्र वाला फरमाया था सो उसकी मिसाल भी पेश करनी थी और दुनिया को दिखाना भी मक़सूद था,सो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को ज़िल्हज्ज की 8,9,10 तारीख को लगातार ख्वाब में आपके बेटे की क़ुरबानी करने का हुक्म दिया गया,चुंकि ये हुक्म ख्वाब में देखा था तो 8 को पूरा दिन सोचने में गुज़र गया तो इस दिन को यौमुल तरविया यानि सोच विचार का दिन कहा गया फिर 9 को ख्वाब देखा तो पहचान लिया कि ये सच्चा ख्वाब है तो इसे यौमुल अरफा यानि पहचानने का दिन फिर 10 को इरादा कर लिया क़ुरबानी पेश करने का इस लिए इस दिन को यौमुन नहर यानि क़ुरबानी का दिन कहा गया_*

*📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 2,सफह 296* 

*_क़ुरबानी के वक़्त हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की उम्र कितनी थी इसमें 2 क़ौल है बाज़ ने 7 साल कही और बाज़ ने 13,मगर 13 ही राजेह है,10वीं ज़िल्हज्ज को आप अपने बेटे को लेकर मिना की जानिब निकल पड़े पहले तो शैतान ने दोस्त बनकर उन दोनों को रोकना चाहा मगर जब कामयाब ना हो सका तो उनको रोकने के लिए इतना बड़ा बन गया कि पूरा रास्ता ही बन्द कर दिया,एक फरिश्ता हाज़िर हुआ और आपसे फरमाया कि इसे 7 कंकरियां मारिये ये दफअ होगा आपने उसे मारा तो भाग गया फिर दूसरी जगह आया तो फिर आपने उसे मारकर भगाया फिर तीसरी बार भी आया और मार खाकर भागा,हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम को बताया कि वो यहां उन्हें किस लिए लाये हैं और साबिर बेटे ने जवाब दिया कि "आप अपने रब का हुक्म अदा करें इंशाअल्लाह आप मुझे साबिर ही पायेंगे" और अपने बाप को मशवरा दिया कि मुझे रस्सी से बांध दीजिए ताकि मैं तड़पुं नहीं और अपने कपड़ो को भी मेरे खून से बचाइयेगा और मेरी वालिदा को मेरा सलाम कहियेगा,फिर आपने उन्हें पेशानी के बल लिटाया ये भी हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम का मशवरा ही था कि कहीं आप मेरे चेहरे को देखकर मुहब्बते पिदरी में ना आ जाएं और उन्हें लिटाकर उन पर छुरी चला दी,रिवायत में आता है कि आपने 70 मर्तबा छुरी चलाई तो जब 70 मर्तबा भी चलने के बाद रग ना कटी तो आपने जलाल में आकर छुरी फेंक दी और कहा कि तू मेरा हुक्म क्यों नहीं मानती है तो छुरी बा ज़ुबान होकर बोलती है कि हुज़ूर आप गुस्सा ना करें आप काटने को कहते हैं और मेरा रब मुझे मना फरमाता है आप ही बतायें कि मैं क्या करूं तो आपने फरमाया कि तेरा काम काटना है तो तू काट तो छुरी बोलती है कि आग का काम भी तो जलाना होता है फिर क्यों आग ने आपको नहीं जलाया_*

*📕 नुज़हतुल मजालिस,5,सफह 24*

*_अल्लाह के हुक्म से हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम जन्नत से एक मेंढा लाये जो हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम का फिदिया बना और आपकी जगह वो ज़बह हुआ,इसका नाम जरीर था और ये वही मेंढा था जिसे हज़रत हाबील पहले ही राहे खुदा में क़ुर्बान कर चुके थे और ये जन्नत में मज़े से रह रहा था,ये मेंढा रूए ज़मीन का इकलौता ऐसा जानवर है जो अल्लाह के नाम पर 2 बार ज़बह हुआ,आपने इसके गोश्त को परिंदों को खिलाया क्योंकि इस पर आग असर ना करती थी कि पकाया जाता_* 

*📕 जलालैन,हाशिया 21,सफह 377*

*_हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि अरफा यानि 9 ज़िल्हज्ज का रोज़ा अगले व पिछले 1 साल के गुनाहों का कफ्फारा है_*

*📕 बहारे शरियत,हिस्सा 5,सफह 137*

*एक और बात चुंकि ये रोज़ा नफ्ल है तो अगर किसी का कभी का कोई भी रोज़ा रमज़ान का बाकी हो तो बजाये नफ्ल नियत करने के वो रमज़ान के क़ज़ा की नियत करले तो इंशाअल्लाह उसका एक रोज़ा अदा भी हो जायेगा और अरफे की भी फज़ीलत पायेगा*

*_अरफे की रात, 2 रकात नमाज़ नफ्ल इस तरह पढ़ें कि पहली में सूरह फातिहा के बाद 100 बार आयतल कुर्सी और दूसरी में 100 बार सूरह इखलास,तो क़यामत के दिन इस नमाज़ की बरकत से मौला उसको और उसके घर व अज़ीज़ों से 70 लोगों की बख्शिश फरमायेगा_* 

*📕 बारह माह के फज़ायल,सफह 484*

*_9वीं ज़िल हज्ज की फज्र से लेकर 13वीं की अस्र तक बा जमात नमाज़ पढ़ने वालों को हर फर्ज़ नमाज़ के बाद तकबीरे तशरीक़ 1 बार पढ़ना वाजिब और 3 बार कहना मुस्तहब है,जिनकी कुछ रकातें छूट गयी हो वो अपनी पढ़ने के बाद कहें,तन्हा नमाज़ पढ़ने वालों और औरतों पर वाजिब नहीं मगर बेहतर है कि वो भी पढ़ें,नफ्ल व सुन्नत व वित्र के बाद वाजिब नहीं मगर जुमा के बाद वाजिब है_*

*📕 बहारे शरियत,हिस्सा 4,सफह 110*

*तकबीरे तशरीक़ ये है - अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर ला इलाहा इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर वलिल्लाहिल हम्द*

*اللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُ لَا إلَهَ إلَّا اللَّهُ وَاَللَّهُ  أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُ وَلِلَّهِ الْحَمْدُ*

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*🌹والله تعالیٰ اعلم بالصواب🌹*
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