हुजुर नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम पर कुरबानी फर्ज़ थी और उम्मत

हुजुर नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम पर कुरबानी फर्ज़ थी 
और उम्मत पर यकिनन साहीबे निसाब पर कुरबानी वाजिब है 
उसकी दलिल फसल्लि ली रब्बिका वन्नहर है 
और इसकी ताईद उस हदीस है कि हुजुर नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम ने फरमाया ये कुरबानी तुम्हारे बाप इब्राहीम अलहीस्सलाम कि सुन्नत है लिहाज़ा कुरबानी करो 

तो हदीस व कुरान मे कुरबानी का अम्र है और अम्र वाजिब होता है 
और फरमाया कि जिसने नमाज़ से पहले कुरबानी कि वो अपनी कुरबानी दौहराए और अल्लाह के नाम पर ज़िब्ह करे 

और जो कुरबानी कि गुंजाईश पाए और कुरबानी ना करे वो हमारी इदगाह पर ना आए 

लिहाज़ा सुन्नते इब्राहीम कहने का कतीय ये मतलब नही कि कुरबानी सिर्फ सुन्नत है बल्कि सुन्नत से मनसुब करने का मतलब है कि ये हमारे दीने इस्लाम का तरीका है जो इब्राहीम अलहीस्सलाम से चला आ रहा है 

रही हजरत अबु बक्र व हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु कि वो हदीस कि आपने साल दौ साल छोङकर कुरबानी कि उसका जवाब व ताविल ये है कि आप अफलास मे से थे यानी इतना माल कभी रखा ही नही जमा करके कि कुरबानी वाजिब हो ,,और कभी किसी साल यौमे नहर माल आया भी तो वो भी कुरबानी करके वाजिब अदा कर दिया 
दुसरी ताविल ये है कि आप या तो सफर मे रहे जिसकी बिना पर कुरबानी वाजिब ना होती है 
लिहाज़ा जमहुर आईम्मा के नज़दीक कुरबानी वाजिब ही है

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