27_जिल्ल_हिज्जा_यौमे_शहादत_फ़ारूक़_ऐ_आज़म
#27_जिल्ल_हिज्जा_यौमे_शहादत_फ़ारूक़_ऐ_आज़म
#शान__ऐ___उमर___इब्ने___खत्ताब !
सय्य्दना फरूक ऐ आज़म सहाबा में वो शान रखतें हैं ! फ़ारूक़ ऐ आज़म मुराद ऐ मुस्तफा हैं ! पूरी दुनिया सरकार ऐ दो आलम अलैहिस्सलाम को दुआओं में मांगती हैं पर अल्लाह के रसूल ने शबे जुमआ में रब से दुआ में सय्य्दना उमर ऐ फारूक ऐ आज़म को माँगा था !
उमर इब्ने खत्ताब को हुज़ूर अलैहिसलाम रब से कहतें या रब मक्के में दो उमर है एक उमर बिन शाम है एक उमर बिन खत्ताब है दोनों में से किसी एक को ईमान की दौलत अता फर्मा और उसके ज़रिये इज़्ज़त अता फर्मा और अल्लाह ने हज़रते उमर ऐ फ़ारूक़ को ईमान की इंसाफ की इज़्ज़त की दौलत अता की !
आपके इस्लाम कबूल करते ही मक्का में नारे तकबीर ऐसे बलन्द हुआ मक्के के दरो दिवार में फ़ज़ाओं में नारा गूंजा सय्य्दना अबू बक्र के बाद आप तख्ते खिलाफत पर आय और आपने 22 लाख 56 हज़ार मुरब्बा मील के हुदूद तक कायम क्र दिया सहाबा फरमातें हैं जबसे उमर इब्ने खत्ताब इसलाम कबूल किए हर रोज़ इसलाम उरूजियत पे जा रहा आपकी हुकूमत इंसानो पे नहीं बल्कि पहाड़ों पे हवाओं पे समंदर आग पे मिटटी पे सब पर थी !
हज़रत शाह वल्लीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी फरमातें हैं 17 जगह क़ुरआन ऐ मजीद में सय्य्दना उमर ऐ फ़ारूक़ के राय मसवरे के मुताबिक क़ुरआन नाज़िल हुवा !
इस्लाम लाने के बाद आप नबी ऐ करीम से अर्ज़ करते हैं या रसूल अल्लाह हम हक़ पर हैं ना आपने कहा हाँ उमर , सय्य्दना उमर कहते हम यूँ हुज़रों में कमरों में छुप छुप कर नमाज़ क्यों अदा करतें हमे ऐलानिया नमाज़ पढ़नी चाहिए आक़ा अलैहिस्सलाम फरमातें हैं कुफ्फार की इज़ा पहुंचाने की वजह से सहाबा को इज़ा तकलीफ ना पहुंचाय इस वजह से हम यूँ अदा करतें हैं !
पूरा मक्का मुकर्रमा सय्य्दना उमर ऐ फ़ारूक़ के जलाल वा जमाल उनके ज़ुल्फ़िकार की से वाकिफ थें ! सय्य्दना उमर फ़ारूक़ कहतें या रसूल अल्लाह चलिए शहर ऐ काबा में नमाज़ पढ़ते हैं ,
और फ़ारूक़ी तेवर में कहतें आपको नमाज़ पढ़ने से कौन रोकता है ,
तारीख में आता है आगे आगे सय्य्दना उमर ऐ फारूक़ ऐ आज़म पी सय्यदुस शोहदा अमीरे हमज़ा पीछे पीछे "
अल्लाहु अकबर "
ये चलें और उमर इब्ने खत्ताब ने फ़रमाया जिसको अपनी औरतों को बेवा करना हो जिसकों अपनी औलादों को यतीम करना हो अब वो मेरे रसूल को रोक कर के बता दे और काबे के सामने नमाज़ अदा करने से कौन रोकता है !
और पहली बार आपके इसलाम कबूल करने के बाद शहर ऐ काबा में मुसलमानो ने ऐलानिया नमाज़ पढ़ा आपकी क़ियादत में और जब हिज़रत का वक़्त सहाबा ऐ किराम कुफ्फार की साज़िशों से छुप छुप कर हिज़रत किया ,,,,,
पर फ़रूक ऐ आज़म ने कमर मुबारक में तलवार को बाँधा और हाथ में नेज़ा लिया काबे का तवाफ़ किया और कुफ्फारे मक्का से कहा मर हिज़रत कर रहा हूँ अगर किसी में हिम्मत है तो मेरा मुकाबला कर लो,,,
इस शान से आपने जिंदगी गुज़ारी और जब तक आप गवर्नर रहें मदीने मुनव्वरा में एक भी गैर मुस्लिम को इज़ाज़त ना दी रहने की 26 जिल्ल हिज्जा आपके शहादत का दिन है अल्लाह करीम हमे फ़ारूक़ ऐ आज़म की तरह नामूसे मुस्तफा दींन ऐ मुहम्मदिया की हिफाज़त करने की सलाहियत दे और इनके साथ इनके झंडे तले हमे बरोज़े हश्र उठे !
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