शहंशाहे_कर्बला
*#शहंशाहे_कर्बला*
कायनात में अल्लाह को सबसे ज़्यादा महबूब नबी ए पाक ﷺ की ज़ात बा बरकत है- और अल्लाह का महबूब होते हुए भी सरकारे पाक ﷺ ने सबसे ज़्यादा तकालीफ बर्दाश्त कीं-
खुद भी सब्र किया और अपनी आल को भी अपने नक़्शे क़दम पे चलने की नसीहत की- तो अल्लाह ने सब्र करने वालों और सब्र की तल्क़ीन करने वालों के लिए सूरह नाज़िल फरमा दी-
मफ्हूम:
"ऐसे लोग हरगिज़ घाटे में नहीं हैं जो ईमान लाए और नेकी करें और सच्ची बात कहें और सब्र की तल्क़ीन करें-"
इसी तरह सब्र करने और दुश्मनों को मुआफ करने की रिवायत आप ﷺ और आपकी आल ने क़ायम रखी-
تیغ لا چوں از میاں بیرون کشید
از رگ ارباب باطل خون کشید
نقش الااللہ بر صحرا نوشت
سطر عنوان نجات مانوشت
अल्लामा इक़बाल फरमाते हैं कि:
"इमाम हुसैन رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ ने कर्बला के मैदान में "ला" की तलवार चलाई और सहरा ए कर्बला में اِلااللہ का नक़्शा खींच कर हमारी निजात के लिए राह फराहम कर दी-"
वासिफ अली वासिफ कहते हैं कि:
"ज़र्बे यदुल्लाह भी उसी के पास है जिसके पास सज्दा ए शब्बीरी है..."
लेकिन नहीं...आपने इमाम आली मक़ाम ने वही किया जो आपके वालिद हज़रत अली رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ ने किया था......."सब्र"
जो आपके प्यारे नाना हज़रत मुहम्मद ﷺ ने करके दिखाया था...
लम्हा ए फिक्र है आज हम सबके लिए कि जिनकी पैरवी करते हैं वो क्या कर गए और हम क्या कर रहे हैं...हम खुद को उनका पैरोकार और फक़ीर तो कहते हैं क्या उन जैसा सब्र का मुज़ाहिरा भी करते हैं?
मेरे बादशाह हुसैन رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ को मज़लूम कहने वालो! कुछ खुदा का खौफ करो- इमाम हरगिज़ मज़लूम नहीं थे- मैं कहता हूं कि जो मेरे इमाम को मज़लूम कहते हैं वो इमामे पाक से इश्क़ नहीं करते और अगर उनको इश्क़ का दावा है तो फिर वही करो जो इमाम ने किया- वो सब ताक़तें मौजूद होने के बावजूद सब्रो रज़ा के दामन में लिपटे रहे और हक़ पे क़ायम रहते हुए और बातिल की नफी करते हुए जामे शहादत नोश किया-
इमाम हुसैन رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ कर्बला के शहंशाह हैं और ऐसे शहंशाह हैं क़यामत तक कर्बला को तो क्या सारी दुनियां के लोगों को आप رضی اللّٰہ تعالیٰ عنہ की शहंशाहत पे नाज़ रहेगा...!!!
Beshaq
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