पैराहन_ए_صلی_ﷲ_علیہ_وآلہ_وسلم

*#पैराहन_ए_صلی_ﷲ_علیہ_وآلہ_وسلم*

हज़रत यूसुफ़ علیہ السلام वाली ए मिस्र हैं- मुसीबतों और आज़माइश के ज़माने बीत चुके हैं सर पर ताजे शाही सजा पड़ा है- आप علیہ السلام की शानो शौकत,सखावत व मुहब्बत के चर्चे लोगों की ज़बानों पर जारी हैं- इधर अहले कनआन भी क़हत साली की लपेट में आते हैं तो आप علیہ السلام के भाई गल्ला लेने के लिए हाज़िरे दरबार होते हैं- जान पहचान के बाद आप علیہ السلام अपने करीमो शफीक़ वालिदे गिरामी का हाल पूछते हैं तो ब्रादरान अर्ज़ करते हैं कि:
              "आपके गमे फुरक़त में रोते रोते उनकी आंखें सफेद हो गई हैं-"
तो ताजदार हज़रत यूसुफ़ علیہ السلام ये जवाब सुनकर फरमाते हैं:

اِذْهَبُوْا بِقَمِيْصِىْ هٰذَا فَاَلْقُوْهُ عَلٰى وَجْهِ اَبِىْ يَاْتِ بَصِيْرًاۚ وَاْتُوْنِىْ بِاَهْلِكُمْ اَجْمَعِيْنَ۔
"मेरा ये कुर्ता ले जाओ,इसे मेरे बाप के मुंह पर डालो उनकी आंखें खुल जाएंगी-"
( سورۃ یوسف،آیت: ٩٣ )

فَلَمَّآ اَنْ جَآءَ الْبَشِيْرُ اَلْقَاهُ عَلٰى وَجْهِهٖ فَارْتَدَّ بَصِيْرًا۔
"फिर जब खुशखबरी देने वाला आया उसने वो कुर्ता उसके मुंह पर डाल दिया तो बीना हो गया-"
(سورۃ یوسف، آیت:٩٦ )
जब हज़रत यूसुफ़علیہ السلام की क़मीज़ बाइसे शिफा है तो सरवरे अंबिया महबूबे कायनात रसूले अकरम ﷺ के क्या कहने-
( حبیب کمال و جمال، صفحہ: ٥١٦،٥١۷ )

इब्ने अदी ने मुहम्मद बिन जाबिर से रिवायत की, उन्होंने कहा... मैंने अपने बाप से सुना वो अपने बाप सनान बिन तलक़ यमामी से रिवायत करते हैं कि:
           "जब बनी हनीफा का वफ्द हुज़ूर नबी ए अकरम ﷺ की खिदमत में पहुंचा तो सबसे पहले मैं आप ﷺ की खिदमत में हाज़िर हुआ- उस वक़्त आक़ा ए करीम ﷺ अपना सर मुबारक धो रहे थे-"
मुझे देखकर फरमाया:
            "ए ब्रादरे यमामा बैठ जा तू भी अपना सर धो ले-"
हुक्म पाकर मैंने भी आप ﷺ के बचे हुए पानी से सर धोया और मैं मुसलमान हो गया- फिर आप  ﷺ ने मुझे कुछ लिखकर दिया-
मैंने अर्ज़ किया कि:
            "आप ﷺ मुझे अपनी कमीज़ मुबारक का टुकड़ा अता कीजिए कि मैं अपनी तस्कीने खातिर के लिए इसे तबर्रुकन अपने पास रखूंगा-"
मुहम्मद बिन जाबिर कहते हैं कि मेरे बाप ने कहा कि:
             "हुज़ूर नबी ए अकरम ﷺ की क़मीज़ मुबारक का वो क़ितआ मुक़द्दसा बाप दादा से चलता हुआ मेरे हाथ आया- हम बीमारों को ब ग़र्ज़े शिफा धोकर पिलाते और वो उस पानी से शिफा पाते..!!"
( خصائصِ کبریٰ،جِلد: ٢، صفحہ: ٢٦ )

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