पानी की क्या कमी थी वो वक़्ते इम्तिहां था हो जाता चश्मा जारी कहते अगर ज़ुबा से"

एक मर्तबा इमाम #हुसैन रज़ि खेलते -खेलते एक बाग मे चले गये ।सय्यदा #फातेमा ने नबी ए पाक से अारज़ू  की बाबा जान मैं परेशान हो गयी, हुसैन को देखते -देखते सुबह का गया है,दोपहर हो गयी अब तक लौटा नही।

#अल्लाह के #नबी ने फरमाया, बेटी मे उसे ले आता हूँ।नबी ए पाक के साथ #फिज्जा और हजरत #अली भी गये।
ढुंढते हुवे रास्ते मे एक बाग की तरफ रुख किया तो क्या देखा के तपती हुइ रेत पर हुसैन पाक आराम से
सो रहे हैं।

सरकार देख कर मुस्कुराये
फिज्जा और जो लोग देख रहे थे, उन्होने कहा सरकार आप हुसैन को तपती हुइ रेत पर देखकर आप बेकरार नही होते और आप मुस्कुरा रहे हैं, तो नबी ए पाक ने फरमाया तुम देख रहे हो हुसैन तपती रेत पर सोया है
और मैं देख रहा हूँ नीचे एक फरिश्ते का पर बिछा है और ऊपर एक फरिश्ते का सायबान है। मेरा हुसैन इस शान से सोया है ।

इतने मे ही इमाम हुसैन की आंख खुल गयी ।कहा नाना जान मुझे भुख लगी है, मुझे खाना चाहिए।आका ने कहा बेटे घर चलो तुम्हारी मां तुम्हें ढुंढ रही है। वहीं पर खाना खा लेना। हुसैन ने कहा नही नाना मुझे यहीं चाहिए। हुजूर ने कहा बेटा घर चल कर खा लेना। हुसैन ने कहा नहीं नाना यही खाऊगां।आप यह कहकर रोने लगे।

अभी ये बात हो ही रही थी के #जिब्रील अलयहिस्सलाम
जन्नत से खाना ले कर अाये और अरज की या हुजूर सलल्ललाहो अलयहे वस्सलम अल्लाह की मरजी है आप हुसैन को ना रुलाये हुसैन का रोना अल्लाह को पसंद नही आता हुजूर ये खाना आप हुसैन को खिलाये।

बचपन मे आरजू की तो खाना खुदा ने #जन्नत से भेज दिया।
कल मैदान ए #करबला मे कोई ये ना कह सके के हुसैन
खाने और पानी के लिये मजबूर थे।

"पानी की क्या कमी थी वो वक़्ते इम्तिहां था
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