आला हजरत का तर्जुमानी कुरान कन्ज़ुल ईमान और अदब ए रसूल सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम
(आला हजरत का तर्जुमानी कुरान कन्ज़ुल ईमान और अदब ए रसूल सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम )
यु तो कुरान के कयी मकामात ऐसे है जहा पर बङे बङे 100 दौ सौ साल मे जितने तर्जुमा हुवे उन तर्जुमा करने वालो मे अकसर अदब ए रिसालत कि राह से डगमगा गये
और सिर्फ अदब कि राह से नही डगमगाए बल्कि आयत के मकसद और ब्यान को भी नही अदा कर पाए और बेअदबी व गुस्ताखी की वादी मे पहुच गये
जबकी आला हजरत उस जगह पर भी अदब कि राह मे पहाङ तरह डटे हुवे नज़र आए देखिये इस आयत को 👇👇
وَ وَجَدَکَ ضَآلًّا فَہَدٰی
तर्जुमा आला हजरत का - और तुम्हे अपनी मोहब्बत मे खुद राफ्ता पाया तो अपनी तरफ राह दी ( सुरा वद्दुहा आयत नम्बर 7)
ये जो आयत है इस आयत का तर्जुमा सौ सालो मे जितनो ने तर्जुमा किया
उन्होने यु किया
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और तुम्हे राहे हक से भटका हुवा पाया तो हिदायत दी
और तुम्हे राह भुला पाया तो हिदायत नही दी ?)
और तुम्हे रास्ते से नावाकिफ पाया तो राह दिखाई ( तकि उस्मानी )
और तुम्हे भटका हुवा पाया तो हिदायत दी
माज़ अल्लाह ,,हुजुर सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम को भटका हुवा ,राह से भुला ,बेहिदायत ,गुमराह ना जाने क्या क्या कह दिया तर्जुमा करने वालो ने
अब बताओ जो राह से भटका हुवा हो वो भला लोगो को हिदायत कैसे दे सकता है ?
अगर गैर मुस्लिम इन तर्जुमे को पढकर ये कह दे कि तुम्हारे नबी तो पहले खुद भटके हुवे ,भुले हुवे ,गुमराह ,थे तो क्या जवाब दोगे ?
अब सुनो इस आयत मे द़ाल का लफ्ज़ आया है जिसका माना खोया हुवा ,डुबा हुवा ,भी होता है
और गुमराह ,भटका ,भुला ,बेहिदायत भी होता है
लेकिन यहा खिताब हुजुर अलहीस्सलाम से तो यहा आयत के खिताब को देखा जाएगा
अब सवाल ये उठता है कि ये जो आला हजरत ने खुद राफ्ता का तर्जुमा किया है वो तर्जुमे के एतबार से सही है या नही ?
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