तौहीद

बहुत से लोग हुवे जिन्होने अपनी अक्ली दलाईल से 
या अपनी तहकिक से 
या कोई और ज़राए से ये तस्लिम कर लिया था कि इस कायनात का मालिक और खालिक सिर्फ एक है 

जैसे कि साई बाबा जो सारी ज़िन्दगी कहते रहे ( जैसा कि सुना गया है ) सबका मालिक एक है 

बहुत से लोग हुवे जिन्होने शिर्क ना किया ,ना किसी मखलुक को पुजा बल्कि वो वहदत यानी एक खुदा होने का तसव्वुर रखते थे ,,या यकिन रखते थे 

लेकिन उसके बावजुद उनका ये एक खुदा को मानना या तसव्वुर करना ,फलसफा ,नज़रीया तो कहला सकता है लेकिन तौहीद नही कहला सकता और ईमान ना कहला सकता है 
क्योकि तौहीद बनती ही जब है जब नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम कि खबर पर ईमान लाया जाए 
यानी आपके ज़रीये यानी आपके वसिले से जब अल्लाह कि वहदत को मानोगे तब वो तौहीद बनेगी वर्ना वो खालिस नाॅलेज ,तसव्वुर ,नज़रीया ,फलसफा कहलाएगी तौहीद नही 
इसलिये कुरान मे जब सुराह तौहीद ब्यान हुवी तो यु इरशाद फरमाया गया 👇👇
قُلۡ ہُوَ  اللّٰہُ  اَحَدٌ
यानी - आप फरमा दे कि अल्लाह एक है ( सुराह इखलास आयत 1) 
तो जब नबी फरमा दे कि अल्लाह एक है और आपके फरमाने पर यकिन कर लिया जाए तो फिर तौहीद बनती है 
वर्ना अल्लाह कि यकताई को मानने वाले तो पहले भी थे और अब भी है लेकिन उनका मानना तौहीद ना हुवा ।

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