मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी رحمۃ اللہ علیہ की हिस्ट्री।
*l मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी رحمۃ اللہ علیہ की हिस्ट्री।_*
*_ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी رحمۃ اللہ علیہ एक बहुत बड़े सूफ़ी, आलिम और चिश्ती सिलसिले के बुज़ुर्ग थे। आप ईरान में खुरासान के क़रीब संजर नामी गांव के एक अमीर घराने में पैदा हुए।_*
*_पैदाइश:- ) ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رحمۃ اللہ علیہ की पैदाइश 14 रजबुल मुरज्जब को हुई। और आपका नाम मोइनुद्दीन रखा गया। आपके वालिद का नाम ख़्वाजा ग़यासुद्दीन رحمۃ اللہ علیہ था। ख़्वाजा ग़यासुद्दीन رحمۃ اللہ علیہ एक बड़े अमीर ताजिर थे। साथ ही साथ आप बड़े आबिदो, ज़ाहिद, परहेज़गार और बाअसर शख़्स थे। ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رحمۃ اللہ علیہ की वालिदा का नाम बीबी माहे नूर था। ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رحمۃ اللہ علیہ हसनी हुसैनी सय्यद थे। आपका नसब 12 वासतों से ह़ज़रत अली رضی اللہ عنہ से मिलता है। ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رحمۃ اللہ علیہ के घर में बेहिसाब दौलत होने के बावजूद भी बचपन से बड़े ही क़नाअ़त पसंद थे।_*
*_बचपन:- ) ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رحمۃ اللہ علیہ अभी 15 साल के थे कि आपके वालिद का साया आपके सर से उठ गया। आपको इसका बहुत ग़म हुआ और आपकी तालीम पर भी इसका बड़ा असर पड़ा। आपकी वालिदा ने आपको समझाया। वालिदा की हौसला अफ़ज़ाई से आप दोबारा इल्म हासिल करने में लग गए। लेकिन अभी वालिद की जुदाई का ज़ख़्म भरने ना पाया था की वालिदा का साया भी सर से उठ गया। विरासत में आपको एक बाग और आटा पीसने की चक्की मिली थी। वालिदैन के इंतकाल के बाद ज़िम्मेदारियां बढ़ गई। और यह एक ऐसी मजबूरी थी जिसका कोई इलाज ना था। जिसकी वजह से आपकी तालीम का सिलसिला भी मुनक़तअ़् हो गया।_*
*_दुर्वेश से मुलाकात:- आप हर रोज़ की तरह आज भी बाग की देखभाल कर रहे थे, कि अचानक एक बुज़ुर्ग उधर से गुज़रे। यह देख कर ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رحمۃ اللہ علیہ दौड़ते हुए उनकी तरफ़ गए। उनके हाथों को बोसा दिया। बुज़ुर्ग ने शफ़्क़त से आपके सर पर हाथ फेरते हुए फ़रमाया: बेटा क्या चाहते हो। ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رحمۃ اللہ علیہ ने फ़रमाया कि आप थोड़ी देर मेरे बाग में क़याम फ़रमाएं तो मेरे लिए बड़ी ख़ुशी की बात होगी। कौन जानता है कि आप से फ़िर मुलाक़ात हो या ना हो। यह सुनकर बुज़ुर्ग मना ना कर पाए और बाग में तशरीफ़ ले आए। थोड़ी देर गुज़री कि ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رحمۃ اللہ علیہ अंगूर के 2 तबाक़ लेकर बुज़ुर्ग की बारगाह में हाज़िर हुए और खुद हाथ बांधकर खड़े हो गए। यह देख कर बुज़ुर्ग बहुत ख़ुश हुए और अपनी झोली में हाथ डालकर रोटी का एक सूख़ा टुकड़ा निकालकर ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رحمۃ اللہ علیہ की तरफ़ बढ़ाया और फ़रमाया: वह तेरी मेहमान नवाज़ी थी और यह फ़क़ीर की दावत। उन बुज़ुर्ग का नाम शेख इब्राहिम क़ंदूज़ी رحمۃ اللہ علیہ था। रोटी का टुकड़ा खाते ही ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رحمۃ اللہ علیہ की दुनिया ही बदल। आप ने अपना बाग बेच दिया और उसकी रक़म गरीबों में बांट दी और इल्म हासिल करने के लिए अपने वतन से रवाना हो गए।_*
*_इल्मी सफ़र:- ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رحمۃ اللہ علیہ सब कुछ अल्लाह की राह में लुटा कर समरकंद और बुख़ारा तशरीफ़ ले गए जहां आपने जा़हिरी उलूम हासिल करे। क़ुरआन पाक हिफ्ज़ किया, तफ़सीर, फ़िक़ह् वगैरा उलूम में महारत हासिल की। ज़ाहिरी उलूम हासिल करने के बाद आपको एक मुर्शीदे कामिल की तलाश हुई। जो आपको बातिनी उलूम से आरासता करे।_*
*_बैअ़त-व-ख़िलाफ़त:- ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رحمۃ اللہ علیہ एक मुर्शीदे कामिल को तलाश करते हुए इराक़ वक़्त के मशहूर बुज़ुर्ग ख़्वाजा उस्मान हारुनी رحمۃ اللہ علیہ के पास जा पहुंचे। आप ढाई साल तक मुर्शिद की खिदमत में रहे। ख़िदमत का ऐसा जज़्बा था कि आप सारी-सारी रात ना सोते कि कहीं मुर्शीद को किसी चीज़ की ज़रूरत ना पड़ जाए। ख़्वाजा उस्मान हारुनी رحمۃ اللہ علیہ ने आपको रोज़-ए-रसूल ﷺ और कअ़बा शरीफ़ की ज़ियारत कराई। जब रोज़-ए-रसूल ﷺ पर हाज़िरी हुई तो ख़्वाजा उस्मान हारूनी ने फ़रमाया कि सलाम करो। ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رحمۃ اللہ علیہ ने सलाम किया السلام عليكم يا سيد المرسلين जवाब आया وعليكم السلام يا سلطان الهند यहीं से अल्लाह के रसूल ﷺ ने आपको हिंदुस्तान का बादशाह बनाकर यहां रवानगी का हुक्म दिया।_*
*_हिंदुस्तान तशरीफ़ आवरी:- ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رحمۃ اللہ علیہ जब हिंदुस्तान तशरीफ़ लाए तो आपके साथ 40 लोगों की जमाअ़त थी। आप पहले दिल्ली तशरीफ़ लाए। बहुत कम वक़्त आप ने दिल्ली में गुज़ारा और उसके बाद आप अजमेर शरीफ़ तशरीफ़ ले आए।_*
*_दीन की ख़िदमत:- ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رحمۃ اللہ علیہ के हाथों पर 90 लाख लोग मुसलमान हुए।_*
*_विसाल:- 6 रजबुल मुरज्जब को ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رحمۃ اللہ علیہ का विसाल हुआ। एक रिवायत के मुताबिक आपकी उम्र 97 साल हुई है। और एक रिवायत के मुताबिक 103 साल।_*
*_तसानीफ़:- ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رحمۃ اللہ علیہ ने मुख़्तलिफ़ उलूमो फ़ुनून पर कुछ किताबें भी तस़नीफ़ फ़रमाई है। जैसे दलीलुल् आरिफ़ीन, बेहरुल हक़ाइक़, रिसाल-ए-वुजूदिया, दीवाने मोइनुद्दीन चिश्ती वगैरह।_*
*_ख़ुलफ़ा:- ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رحمۃ اللہ علیہ के बहुत सारे ख़लीफ़ा हुए हैं। जिसमें से कुछ मशहूर यह हैं।_*
*क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी رحمۃ اللہ علیہ*
*सूफ़ी हमीदुद्दीन नागौरी رحمۃ اللہ علیہ*
*_सफ़र:- ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رحمۃ اللہ علیہ ने अपनी जिंदगी में बहुत सारे सफ़र किए और बुज़ुर्गों की बड़ी ख़िदमत की। जिसमें से चंद मशहूर यह हैं। बग़दाद शरीफ़ शेख नज्मुद्दीन कुबरा رحمۃ اللہ علیہ की ख़िदमत ढाई महीने की। फिर वहीं बगदाद शरीफ़ में शेख अब्दुल क़ादिर जिलानी رحمۃ اللہ علیہ की ख़िदमत कुछ वक़्त तक की। फिर तबरेज़ तशरीफ़ ले गए। और कुछ दिन शेख अबू सईद तबरेज़ी رحمۃ اللہ علیہ की ख़िदमत की। फिर अस्फ़हान चले गए और मशहूर बुज़ुर्ग शेख़ महमूद अस़्फ़हानी رحمۃ اللہ علیہ की ख़िदमत करते रहे। वहां से रवानगी के वक़्त क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी رحمۃ اللہ علیہ आपके साथ हो लिए जो अभी नो-उम्र ही थे। इनके अलावा आपने और भी बेशुमार बुज़ुर्गों की ख़िदमत का शरफ़ हासिल किया है।_*
*_ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رحمۃ اللہ علیہ की जिंदगी से हमें एक बड़ा सबक़ यह मिलता है कि अपनी जिंदगी में बड़ों का अदब और इल्म हासिल करना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है।_*
*_अल्लाह तआ़ला ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رحمۃ اللہ علیہ के सदक़े में हमे दुनिया और आख़िरत की कामयाबी अता फ़रमाए।_*
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