इन्सान अपने ज़िंन्दगी की उम्र के चार मरहलो मे जिता है

इन्सान अपने ज़िंन्दगी की उम्र के चार मरहलो मे जिता है
 
एक - इन्सान के बचपने से लेकर जवानी तक का मरहला इसमे इन्सान का जिस्म परवान चढता है ये पैदाईश से लेकर बिस साल कि उम्र का मरहला है 

दौ - दुसरा मरहला बिस साल से लेकर चालिस साल तक का है इस मरहले मे इन्सान अपने शबाब को पहुचता है 

तीन - तिसरा मरहला इन्हितात का है ये चालिस से लेकर साठ साल का है इसमे इन्सान अधेङ उम्र को पहुचता है ये उम्र ए ढलान का है इसको कहुलत कहते है

चौथा - साठ से सत्तर अस्सी साल कि उम्र का है इसको सन्ने इन्हितात कहते है इस मरहले पर इन्सान बुढापे कि तरफ चला जाता है 

अब कुरान फरमाता है 👇👇
وَ اللّٰہُ خَلَقَکُمۡ ثُمَّ یَتَوَفّٰىکُمۡ ۟ ۙ وَ مِنۡکُمۡ مَّنۡ یُّرَدُّ اِلٰۤی اَرۡذَلِ الۡعُمُرِ لِکَیۡ لَا یَعۡلَمَ بَعۡدَ عِلۡمٍ شَیۡئًا ؕ اِنَّ اللّٰہَ عَلِیۡمٌ قَدِیۡرٌ
यानी - और अल्लाह ने तुम्हे पैदा किया फिर तुम्हारी जान कब्ज़ करेगा और कोई तुममे सबसे नाकिज़ उम्र कि तरफ फेरा जाता है के जानने के बाद भी कुछ ना जाने बेशक अल्लाह सबकुछ जानता है और सबकुछ कर सकता है ( सुराह नहल आयत 70 )

नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम अपनी दुआओ मे बुज़दली और सुस्ती और बुख्ल और अरज़ल उम्र से और दुनिया के फित्नो और अज़ाबे कब्र से पनाह मांगा करते थे ,

अरज़ल उम्र वो निकम्मी उम्र जब इन्सान कि याद दाश्त चली जाए ,नज़र चली जाए जानने के बावजुद कुछ ना जाने

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